राजनैतिक रूप से पराधीनता से मुक्त होना ही पर्याप्त नहीं होता l वर्षों गुलामी भोगते - भोगते यदि हमारी गुलाम रहने की आदत बन चुकी है तो हम किसी न किसी कि गुलामी करते ही रहेंगे l जिस भी व्यक्ति के पास थोड़ी भी ताकत होती है , वह अपने शक्ति - प्रदर्शन के लिए लोगों को अपना गुलाम बना लेता है l युवा - वर्ग में सबसे ज्यादा ऊर्जा होती है , जीवन का इतना अनुभव नहीं होता , अत: यह वर्ग बड़ी जल्दी लोगों के बहकावे में आ जाता है l अपने ' आका ' के कहने पर ये लोग सड़कों पर नारे बाजी कर लें , दंगे - फसाद कर लें , तोड़ -फोड़ आदि हिंसक कारनामे कर लें इन लोगों के पास सोचने - समझने की शक्ति नहीं होती l विवेक न होने के कारण उनके इशारों पर कठपुतली की तरह नाचते हैं l यह स्थिति छोटे - बड़े हर क्षेत्र में है l
इस मानसिक गुलामी से तभी मुक्ति मिल सकती है जब बच्चों को शुरू से ही परिश्रमी और स्वाभिमानी बनाया जायेगा l
इस मानसिक गुलामी से तभी मुक्ति मिल सकती है जब बच्चों को शुरू से ही परिश्रमी और स्वाभिमानी बनाया जायेगा l
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