मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहते हुए विभिन्न स्वभाव के लोगों से मिलना-जुलना होता है और प्रतिपल मन को अनेक प्रहार सहने पड़ते हैं--- किसी ने हँसी उड़ाई, किसी ने उपेक्षा की, किसी ने हक छीना, किसी ने ईर्ष्यावश षडयंत्र रचे, कोई आपको धक्का देकर आगे बढ़ने पर उतारू है, कोई आपकी जिंदगी में बहुत दखल देता है, चोरी, धोखा आदि अनेक तरह के दुश्मनों से आपका सामना होता है । अब आप अकेले किस-किससे लड़ेंगे, कहाँ शिकायत करेंगे ? कोई एक हो तो उसे सुधारें, ऐसे लोग बहुसंख्यक हैं, इनके साथ अपनी ऊर्जा बरबाद करने से तो अच्छा है कि------
' स्वयं अपना सुधार कर ले, अपने भीतर इतने गुण विकसित कर लें कि मन इतना मजबूत हो जाये कि इन प्रहारों से मन विचलित न हो, हमें जीवन जीने की कला आ जाये । विपरीत परिस्थितियों और दुष्ट - प्रकृति के लोगों व दुश्मनों के बीच रहते हुए भी हम कर्तव्य पालन करते हुए अपनी प्रगति के पथ पर धैर्य और शांति से बढ़ते रहें ।
इसके लिए सबसे ज्यादा जरुरी है--- ईश्वर विश्वास--- ईश्वर विश्वास का अर्थ है---- अपना कर्तव्य पालन करते हुए नि:स्वार्थ भाव से सेवा परोपकार का कार्य करना----- ऐसा करते हुए यदि आप गायत्री मंत्र का जप भी कर लेते हैं तो------ प्रकृति प्रसन्न होंगी--- आपका विवेक जाग्रत होने लगेगा, यह विवेक ही है जिसके जाग्रत होने से विपरीत परिस्थितियों में भी आप सही निर्णय ले पायेंगे । इस क्रम में यदि आप अपने में एक सद्गुण---- ' वैराग्य भाव ' विकसित कर लें तो आपके मन को अनोखी शांति मिल जायेगी जैसे--- किसी ने आपका धन हड़प लिया, आपका हक छीन लिया तो आप जरा भी दुःखी न हों, अपना आत्मविश्वास बनाये रखें और प्रकृति पर, ईश्वर पर अटूट विश्वास के साथ यह सोचें और कहें कि---- कोई किसी का हक छीन सकता है, भाग्य को नहीं छीन सकता, माथे पर खिंची लकीरों को कोई नहीं मिटा सकता, हमारे पास पुरुषार्थ और सत्कर्मों की पूंजी है तो प्रगति के पथ पर आगे बढ़ जायेंगे ।
' स्वयं अपना सुधार कर ले, अपने भीतर इतने गुण विकसित कर लें कि मन इतना मजबूत हो जाये कि इन प्रहारों से मन विचलित न हो, हमें जीवन जीने की कला आ जाये । विपरीत परिस्थितियों और दुष्ट - प्रकृति के लोगों व दुश्मनों के बीच रहते हुए भी हम कर्तव्य पालन करते हुए अपनी प्रगति के पथ पर धैर्य और शांति से बढ़ते रहें ।
इसके लिए सबसे ज्यादा जरुरी है--- ईश्वर विश्वास--- ईश्वर विश्वास का अर्थ है---- अपना कर्तव्य पालन करते हुए नि:स्वार्थ भाव से सेवा परोपकार का कार्य करना----- ऐसा करते हुए यदि आप गायत्री मंत्र का जप भी कर लेते हैं तो------ प्रकृति प्रसन्न होंगी--- आपका विवेक जाग्रत होने लगेगा, यह विवेक ही है जिसके जाग्रत होने से विपरीत परिस्थितियों में भी आप सही निर्णय ले पायेंगे । इस क्रम में यदि आप अपने में एक सद्गुण---- ' वैराग्य भाव ' विकसित कर लें तो आपके मन को अनोखी शांति मिल जायेगी जैसे--- किसी ने आपका धन हड़प लिया, आपका हक छीन लिया तो आप जरा भी दुःखी न हों, अपना आत्मविश्वास बनाये रखें और प्रकृति पर, ईश्वर पर अटूट विश्वास के साथ यह सोचें और कहें कि---- कोई किसी का हक छीन सकता है, भाग्य को नहीं छीन सकता, माथे पर खिंची लकीरों को कोई नहीं मिटा सकता, हमारे पास पुरुषार्थ और सत्कर्मों की पूंजी है तो प्रगति के पथ पर आगे बढ़ जायेंगे ।
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