हमारे आचार्य, ऋषियों ने शांतिपूर्ण ढंग से जीवन जीने के लिए योग के साथ तप को अनिवार्य कहा है और अपने दैनिक जीवन के विभिन्न कार्यों को तप में बदलने का बहुत ही सरल तरीका बताया है , ------- कार्य आपका कोई भी हो आप उसे किसी पवित्र भावना से जोड़ दें जैसे -- स्वच्छता कार्यक्रम के अंतर्गत या घर में ही सफाई का कार्य कर रहें है तो उसे समर्पण भाव के साथ करते हुए सोचें --- कि धरती हमारी माँ है , चल -फिर नहीं सकती , हम उसे तैयार कर रहें हैं ' ऎसी पवित्र भावना जुड़ते ही यह कार्य तप और पुण्य कार्य हो जायेगा । यदि कोई माँस भी बेचता है , वह नाप -तोल ईमानदारी से करे , ग्राहकों की सुविधा का , शुद्धता का ध्यान रखे तो उसका यह कार्य भी तप बन जायेगा । महत्व कार्य का नहीं उससे जुड़ी भावनाओं का है । यदि परिवार के लिए भोजन बनाते हैं तो यह भावना रखें कि हमारे हाथ का भोजन स्वादिष्ट हो जिसे खाने से सब स्वस्थ रहें । यदि कोई पवित्र भावना समझ न आये तो कार्य करती हुए मन ही मन गायत्री मंत्र जप लें ।
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