आज मनुष्य की बुद्धि, दुर्बुद्धि में बदल गई है । वह अपने ही हाथों अपना, अपने परिवार, अपनी जाति का विनाश कर रहा और इस सच का उसे एहसास भी नहीं है । दुर्बुद्धि का यह प्रकोप सबसे ज्यादा धन-संपन्न और बुद्धिजीवी वर्ग पर है ।
जैसे--- कन्या-भ्रूण-हत्या की समस्या कों लें------ तो यह कार्य गरीब, निर्धन और अशिक्षित तथा कम पढ़े-लिखे लोग नहीं करते । यह कार्य बुद्धिजीवी वर्ग के लोग और प्रतिमाह पर्याप्त धन कमाने वाले लोग ही करते हैं । कैसी दुर्बुद्धि है---- मनुष्य अपने ही हाथों किसी अन्य जाति की नहीं, अपनी ही जाति, अपने ही धर्म और अपने ही अंश को बेरहमी से मार डालता है । और ऐसा करके खुश होता है कि अच्छा काम हुआ, अब दहेज बचेगा । फिर सोचता है कि पुत्र होगा तो सुख से जिंदगी कटेगी । किन्तु अत्याधिक धन कमाने के लालच में लोग अपने पुत्र के जीवन को भी सही दिशा नहीं दे पाते, उसकी भावनाओं को, उसकी रूचि को नहीं समझ पाते । परिवार से भावनात्मक लगाव न होने के कारण ही आज की युवा पीढ़ी सिगरेट, शराब, तम्बाकू आदि नशे की शिकार है ।
जिसके पैर नशे मे लड़खड़ाते हों, जो स्वयं गलत आदतों का शिकार हो वह अपने माता-पिता को क्या सुख देगा ?
लेकिन यह एक चिंतन का प्रश्न है कि इस स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है ? जब माता-पिता के स्वयं के जीवन का कोई आदर्श नहीं, कोई मूल्य नहीं, विभिन्न हथकंडों से धन कमाना ही जीवन का लक्ष्य हो तो केवल धन रहता है शेष सब----- सब छूट जाता है ।
जैसे--- कन्या-भ्रूण-हत्या की समस्या कों लें------ तो यह कार्य गरीब, निर्धन और अशिक्षित तथा कम पढ़े-लिखे लोग नहीं करते । यह कार्य बुद्धिजीवी वर्ग के लोग और प्रतिमाह पर्याप्त धन कमाने वाले लोग ही करते हैं । कैसी दुर्बुद्धि है---- मनुष्य अपने ही हाथों किसी अन्य जाति की नहीं, अपनी ही जाति, अपने ही धर्म और अपने ही अंश को बेरहमी से मार डालता है । और ऐसा करके खुश होता है कि अच्छा काम हुआ, अब दहेज बचेगा । फिर सोचता है कि पुत्र होगा तो सुख से जिंदगी कटेगी । किन्तु अत्याधिक धन कमाने के लालच में लोग अपने पुत्र के जीवन को भी सही दिशा नहीं दे पाते, उसकी भावनाओं को, उसकी रूचि को नहीं समझ पाते । परिवार से भावनात्मक लगाव न होने के कारण ही आज की युवा पीढ़ी सिगरेट, शराब, तम्बाकू आदि नशे की शिकार है ।
जिसके पैर नशे मे लड़खड़ाते हों, जो स्वयं गलत आदतों का शिकार हो वह अपने माता-पिता को क्या सुख देगा ?
लेकिन यह एक चिंतन का प्रश्न है कि इस स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है ? जब माता-पिता के स्वयं के जीवन का कोई आदर्श नहीं, कोई मूल्य नहीं, विभिन्न हथकंडों से धन कमाना ही जीवन का लक्ष्य हो तो केवल धन रहता है शेष सब----- सब छूट जाता है ।
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