मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जन्म से लेकर मृत्यु तक हम सबका जीवन निर्वाह अनेक व्यक्तियों, पशु-पक्षियों, प्रकृति, पर्यावरण--- सबके सहयोग से होता है । अत: हमारे जीवन की सुख-शान्ति भी अन्य सभी तत्वों पर निर्भर करती है | एक व्यक्ति यह सोचे कि बहुत धन कमा ले, जीवन की सारी सुख-सुविधाएँ जोड़ ले, योगासन आदि करके स्वस्थ हो जाये, तो भी वह सुख-शान्ति से नहीं रह सकता । यदि ऐसा होता तो एक -से- बढकर-एक विकसित और संपन्न राष्ट्रों में दंगे, आत्महत्या, पागलपन, बीमारियाँ, प्राकृतिक आपदाएं आदि घटनाएं सुनने को न मिलतीं । अज्ञात शक्ति मूक रहकर हमें सिखाना चाहती है कि---- ' सबके सुख में ही हमारा सुख है । '
प्रकृति के किसी भी घटक का शोषण करके, उसके अस्तित्व को मिटाकर कोई सुखी नहीं हो सकता
धन-संपन्न होना बहुत अच्छी बात है लेकिन प्रत्येक संपन्न व्यक्ति को अपने जीवन में झाँक कर देखना चाहिए कि कहीं ये धन किसी के शोषण से, किसी का दिल दुःखा कर तो नहीं आया ।
अब तो विज्ञान ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि हम जो कुछ बोलते हैं, हमारी आवाज इसी वायुमंडल में रहती है । दुःखी, पीड़ित, शोषित व्यक्ति की आहें इसी वायुमंडल में रहती हैं । दूसरों को दुःख देकर व्यक्ति स्वयं अपने लिये अशान्ति मोल लेता है ।
इसलिए यदि आप किसी को सुख नहीं दे सकते तो कोई बात नहीं, लेकिन यदि स्वयं सुखी रहना चाहते हैं तो कभी किसी को सताओ मत, किसी को दुःख न दो ।
प्रकृति के किसी भी घटक का शोषण करके, उसके अस्तित्व को मिटाकर कोई सुखी नहीं हो सकता
धन-संपन्न होना बहुत अच्छी बात है लेकिन प्रत्येक संपन्न व्यक्ति को अपने जीवन में झाँक कर देखना चाहिए कि कहीं ये धन किसी के शोषण से, किसी का दिल दुःखा कर तो नहीं आया ।
अब तो विज्ञान ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि हम जो कुछ बोलते हैं, हमारी आवाज इसी वायुमंडल में रहती है । दुःखी, पीड़ित, शोषित व्यक्ति की आहें इसी वायुमंडल में रहती हैं । दूसरों को दुःख देकर व्यक्ति स्वयं अपने लिये अशान्ति मोल लेता है ।
इसलिए यदि आप किसी को सुख नहीं दे सकते तो कोई बात नहीं, लेकिन यदि स्वयं सुखी रहना चाहते हैं तो कभी किसी को सताओ मत, किसी को दुःख न दो ।
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