आज लोगों के जीवन में अनेक समस्याएं हैं, हर समय उन समस्याओं की चर्चा करना, उनको लेकर दुःखी होने से बेहतर है कि हम उन समस्याओं का हल खोजें । हमें इस बात को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि हमारे पास केवल एक जीवन है, गिनती की साँसे हैं और हर पल बीतने के साथ वे भी कम होती जा रहीं हैं । हर समय समस्या का रोना रोएंगे तो सुख-शान्ति से जीवन कब जिएंगे ?
आज के समय में सबसे ज्यादा परेशान युवा पीढ़ी है । जीवन के प्रारंभिक 25 वर्ष तो किताबी शिक्षा प्राप्त करने में निकल जाते हैं, उसके बाद नौकरी के लिए प्रयास--- कोचिंग करना, प्रतियोगी परीक्षा देना । प्रत्येक पद के लिए मारा-मारी है, जनसँख्या बहुत अधिक है, एक पद के लिए हजारों प्रतिभागी हैं, फिर भ्रष्टाचार, रिश्वत---- ! परिस्थितियां ऐसी हैं कि 30 वर्ष की आयु तक भी युवा पीढ़ी आत्मनिर्भर नहीं हो पा रही । जिन माता-पिता के पास आय के पर्याप्त साधन है, उनके लिए यह बड़ी समस्या नहीं है लेकिन जो बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं, जिनके माता-पिता खेती करके, मेहनत-मजदूरी करके बच्चों को पढ़ाते हैं, उनकी समस्या बड़ी विकट है---- ऐसे युवाओं पर दोहरी मार है, पढ़ने के लिए शहर आ गये तो मेहनत-मजदूरी और खेती की आदत नहीं रही, और अब नौकरी भी नहीं मिल रही दूसरी ओर बूढ़े होते जा रहे माता-पिता, परिवार की सारी आशाएं इन्ही युवाओं पर केन्द्रित हैं ।
अब इस समस्या के हल के लिए हम नौकरी का इन्तजार करें, परिस्थितियों को दोष दें इससे बेहतर है कि कोई ' हुनर ' सीखें, परिवार के सदस्यों एवं सभी को प्रेरित करें कि पढ़ाई के साथ-साथ कोई हुनर, ' कौशल ' अवश्य सीखें । चाहे साईकिल का पंक्चर ठीक करने वाला हों या मोबाइल रिपेयर करने वाला, अपने कौशल से पर्याप्त धन कमा लेते हैं । फिर कितनी प्राकृतिक आपदाएं आती हैं--- कहीं भूकंप, कहीं तूफान, कहीं बाढ़ -- सब घर-बार बह जाता है लेकिन हमारा 'हुनर ' हमारे ही दिमाग में, हमारे अंतर मन में होता है इसे कोई आपदा नष्ट नहीं कर सकती । इसके होने से हम कभी बेबस नहीं होंगे और नये सिरे से पुन: अपना जीवन शुरू कर सकते हैं ।
आज के समय में सबसे ज्यादा परेशान युवा पीढ़ी है । जीवन के प्रारंभिक 25 वर्ष तो किताबी शिक्षा प्राप्त करने में निकल जाते हैं, उसके बाद नौकरी के लिए प्रयास--- कोचिंग करना, प्रतियोगी परीक्षा देना । प्रत्येक पद के लिए मारा-मारी है, जनसँख्या बहुत अधिक है, एक पद के लिए हजारों प्रतिभागी हैं, फिर भ्रष्टाचार, रिश्वत---- ! परिस्थितियां ऐसी हैं कि 30 वर्ष की आयु तक भी युवा पीढ़ी आत्मनिर्भर नहीं हो पा रही । जिन माता-पिता के पास आय के पर्याप्त साधन है, उनके लिए यह बड़ी समस्या नहीं है लेकिन जो बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं, जिनके माता-पिता खेती करके, मेहनत-मजदूरी करके बच्चों को पढ़ाते हैं, उनकी समस्या बड़ी विकट है---- ऐसे युवाओं पर दोहरी मार है, पढ़ने के लिए शहर आ गये तो मेहनत-मजदूरी और खेती की आदत नहीं रही, और अब नौकरी भी नहीं मिल रही दूसरी ओर बूढ़े होते जा रहे माता-पिता, परिवार की सारी आशाएं इन्ही युवाओं पर केन्द्रित हैं ।
अब इस समस्या के हल के लिए हम नौकरी का इन्तजार करें, परिस्थितियों को दोष दें इससे बेहतर है कि कोई ' हुनर ' सीखें, परिवार के सदस्यों एवं सभी को प्रेरित करें कि पढ़ाई के साथ-साथ कोई हुनर, ' कौशल ' अवश्य सीखें । चाहे साईकिल का पंक्चर ठीक करने वाला हों या मोबाइल रिपेयर करने वाला, अपने कौशल से पर्याप्त धन कमा लेते हैं । फिर कितनी प्राकृतिक आपदाएं आती हैं--- कहीं भूकंप, कहीं तूफान, कहीं बाढ़ -- सब घर-बार बह जाता है लेकिन हमारा 'हुनर ' हमारे ही दिमाग में, हमारे अंतर मन में होता है इसे कोई आपदा नष्ट नहीं कर सकती । इसके होने से हम कभी बेबस नहीं होंगे और नये सिरे से पुन: अपना जीवन शुरू कर सकते हैं ।
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