यदि हम इस सत्य को स्वीकार कर लें कि इस संसार मे एक पत्ता भी हिलता है तो वह ईश्वर की इच्छा से, तो हमारी अधिकांश समस्याएं हल हों जायें | इसके साथ ही हम इस सत्य को महसूस करें कि जिस प्रकार हमें अपनी बनाई वस्तु से, अपनी बनाई पेंटिंग से बहुत प्यार होता है, उसी प्रकार ईश्वर ने हमे बनाया, यह दुनिया बनाई तो उन्हे हम से, इस संसार से बहुत प्यार है ।
अब उस पेंटिंग को कोई बच्चा गन्दा कर दे, फाड़ दे तो आप उसे कई प्रकार से समझायेंगे, गुस्सा भी करेंगे, इसी तरह हम सब ईश्वर की संतान हैं और जाने-अनजाने अनेक गलतियाँ करते हैं, इन्ही गलतियों के दंडस्वरुप जीवन मे कष्ट आते है । ईश्वर मौन रहकर हमें सुधारना चाहते हैं ।
यह सच्चाई लोगों को अपने ह्रदय में महसूस करनी होगी, जब भी जीवन में कष्ट आयें तो किसी को दोष देने के बजाय स्वयं के जीवन में झांकना होगा कि ---- अब तक कितने पेड़ काटे, प्रकृति को कितना प्रदूषित किया, कितने निरीह पक्षी व जानवरों को मार कर खा लिया, अपने स्वार्थ के लिए कितनो का हक छीना, किसका दिल दुखाया, किसके विरुद्ध षडयंत्र रचकर कितना पीड़ित किया, गलत तरीकों से कितनी सम्पति अर्जित की------ ऐसी अनेक प्रकार की गलतियों की प्रतिक्रिया स्वरुप जीवन में कष्ट आते हैं ।
प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं होता । हमारी गलतियों से पुण्य का भंडार कम होता जाता है ।
सत्कर्मों से हम अपने पुण्य के भंडार कों भरते रहें जिससे पुण्य की ऊर्जा से उन कष्टों के बीच भी मन शांत रहे और ईश्वर की कृपा से शक्ति व सद्बुद्धि मिले ।
अब उस पेंटिंग को कोई बच्चा गन्दा कर दे, फाड़ दे तो आप उसे कई प्रकार से समझायेंगे, गुस्सा भी करेंगे, इसी तरह हम सब ईश्वर की संतान हैं और जाने-अनजाने अनेक गलतियाँ करते हैं, इन्ही गलतियों के दंडस्वरुप जीवन मे कष्ट आते है । ईश्वर मौन रहकर हमें सुधारना चाहते हैं ।
यह सच्चाई लोगों को अपने ह्रदय में महसूस करनी होगी, जब भी जीवन में कष्ट आयें तो किसी को दोष देने के बजाय स्वयं के जीवन में झांकना होगा कि ---- अब तक कितने पेड़ काटे, प्रकृति को कितना प्रदूषित किया, कितने निरीह पक्षी व जानवरों को मार कर खा लिया, अपने स्वार्थ के लिए कितनो का हक छीना, किसका दिल दुखाया, किसके विरुद्ध षडयंत्र रचकर कितना पीड़ित किया, गलत तरीकों से कितनी सम्पति अर्जित की------ ऐसी अनेक प्रकार की गलतियों की प्रतिक्रिया स्वरुप जीवन में कष्ट आते हैं ।
प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं होता । हमारी गलतियों से पुण्य का भंडार कम होता जाता है ।
सत्कर्मों से हम अपने पुण्य के भंडार कों भरते रहें जिससे पुण्य की ऊर्जा से उन कष्टों के बीच भी मन शांत रहे और ईश्वर की कृपा से शक्ति व सद्बुद्धि मिले ।
very well said..
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