मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । समाज में अच्छा - बुरा जो भी घटित होता है उसका प्रभाव सम्पूर्ण समाज पर पड़ता है । समाज में यदि अन्याय , अत्याचार, हिंसा आदि घटनाएँ हैं तो उसके नकारात्मक प्रभाव से समाज का कोंई भी प्राणी नहीं बच सकता जैसे ---- जब हमारे समाज का कलंक ' सती-प्रथा ' थी, महिलाओं के प्रति कितनी क्रूरता थी, उस वक्त समाज में सर्वत्र अशांति थी, एक ओर हम गुलाम थे दूसरी ओर उस समय हैजा , प्लेग जैसी महामारी , बाढ़, भूकंप आदि प्राकृतिक प्रकोप से समाज का प्रत्येक व्यक्ति त्रस्त था । बाल - विवाह , ' बाल - विधवाओं ' जैसी प्रथाओं में नारी पर भीषण अत्याचार हुए ।
अधिकांश लोगों की प्रवृति अपने से कमजोर को सताने की , उस पर अत्याचार करने की होती है , वे ही लोग मिलकर ऐसी अमानुषिक प्रथाएं बना लेते हैं । अनेक महान समाज - सुधारक हुए जिनके अथक प्रयासों से नारी को इन अत्याचारों से मुक्ति मिली |
लेकिन लोगों की मानसिकता नहीं बदली , नारी पढ़ - लिख कर आत्म निर्भर हो गई तो अब अत्याचार की मनोवृति है --- गर्भ में बालिका भ्रूण-हत्या , दहेज के नाम पर अत्याचार ।
भौतिक प्रगति के साथ न केवल पाशविक प्रवृति बढ़ी है अपितु कायरता भी बढ़ गई है ।
सीधी और सरलता में गाय का उदाहरण दिया जाता है लेकिन धन का लालच और पशुता इतनी बढ़ गई है कि जिस गाय के दूध से और दूध से बनी चीजों से पोषण मिलता है उसी गाय को स्वार्थ पूरा हो जाने पर कसाई को दे दो । गौ हत्या के लिए कोई जाति या धर्म नहीं अपितु सम्पूर्ण समाज जिम्मेदार है । ऐसे प्राणी की हत्या करना जिसने समाज का पोषण किया , उसे मारा तो उसने कभी पलट कर वार नहीं किया , गौहत्या के पाप का प्रायश्चित तीनो लोकों में कहीं नहीं है ।
जिस भी समाज में कमजोर पर चाहे वह गाय हो , नारी हो , अछूत हो अथवा गरीब हो या गुलाम हो , अत्याचार होता है वहां भौतिक समृद्धि कितनी ही आ जाये , सुख -शान्ति , सुकून का जीवन कभी नहीं होता । अत्याचार , अन्याय सहने से जो ह्रदय से आहें निकलती हैं वो सम्पूर्ण वायुमंडल में भर जाती है , वे समाप्त नहीं होतीं , पुन: लौटकर समाज को किसी न किसी रूप में मिलती हैं ।
इस धरती पर जीने का हक़ सबको है , किसी का हक छीनकर हम प्रकृति को नाराज न करे ।
अधिकांश लोगों की प्रवृति अपने से कमजोर को सताने की , उस पर अत्याचार करने की होती है , वे ही लोग मिलकर ऐसी अमानुषिक प्रथाएं बना लेते हैं । अनेक महान समाज - सुधारक हुए जिनके अथक प्रयासों से नारी को इन अत्याचारों से मुक्ति मिली |
लेकिन लोगों की मानसिकता नहीं बदली , नारी पढ़ - लिख कर आत्म निर्भर हो गई तो अब अत्याचार की मनोवृति है --- गर्भ में बालिका भ्रूण-हत्या , दहेज के नाम पर अत्याचार ।
भौतिक प्रगति के साथ न केवल पाशविक प्रवृति बढ़ी है अपितु कायरता भी बढ़ गई है ।
सीधी और सरलता में गाय का उदाहरण दिया जाता है लेकिन धन का लालच और पशुता इतनी बढ़ गई है कि जिस गाय के दूध से और दूध से बनी चीजों से पोषण मिलता है उसी गाय को स्वार्थ पूरा हो जाने पर कसाई को दे दो । गौ हत्या के लिए कोई जाति या धर्म नहीं अपितु सम्पूर्ण समाज जिम्मेदार है । ऐसे प्राणी की हत्या करना जिसने समाज का पोषण किया , उसे मारा तो उसने कभी पलट कर वार नहीं किया , गौहत्या के पाप का प्रायश्चित तीनो लोकों में कहीं नहीं है ।
जिस भी समाज में कमजोर पर चाहे वह गाय हो , नारी हो , अछूत हो अथवा गरीब हो या गुलाम हो , अत्याचार होता है वहां भौतिक समृद्धि कितनी ही आ जाये , सुख -शान्ति , सुकून का जीवन कभी नहीं होता । अत्याचार , अन्याय सहने से जो ह्रदय से आहें निकलती हैं वो सम्पूर्ण वायुमंडल में भर जाती है , वे समाप्त नहीं होतीं , पुन: लौटकर समाज को किसी न किसी रूप में मिलती हैं ।
इस धरती पर जीने का हक़ सबको है , किसी का हक छीनकर हम प्रकृति को नाराज न करे ।
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