मनुष्य स्वस्थ रहने के लिए, तनाव और अनिद्रा जैसे रोग को दूर करने के लिए ऊपरी प्रयास बहुत करता है--- जैसे योगासन , ध्यान, प्राणायाम, शरीर को स्वस्थ व निरोग रखने के अनेक वैज्ञानिक तरीके भी हैं , लेकिन यदि मन में कुविचार हैं, मन व बुद्धि परिष्कृत नहीं है, किसी भी तरीके से कोई विशेष लाभ नहीं हो सकता ।
मन को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है--- मनुष्य का आहार, उसका भोजन और वायुमंडल में निहित सूक्ष्म तत्व । जैसे आप हरियाली में, पहाड़ी स्थानों पर जायेंगे तो मन को अच्छा लगेगा,
लेकिन शमशान में जायेंगे या ऐसे पुराने कि ले में जहां लोगों को फांसी दी जाती थी, शारीरिक प्रताड़ना दी जाती थी, ऐसे स्थान पर अजीब सी नीरवता होगी, आपका मन भी वहां बेचैन हो जायेगा आज के समय में जगह-जगह पर अपराध, हत्या , युद्ध के समाचार हैं, हज़ारों-लाखों गायों को और अन्य मूक प्राणियों को काटा जाता है तों उन सबके चीत्कार से पूरा वतावरण विषाक्त है । लोगों के मन पर दोहरा आक्रमण है---- एक तो वातावरण विषाक्त है और दूसरा लोगों ने मांस खा कर अपना अंतर प्रदूषित कर लिया है । अब शान्ति कैसे मिले ?
विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली लेकिन आज भी मनुष्य की सोच आदिमानव जैसी है--- मांसाहार नहीं छोड़ रहे, शमशान का वातावरण अपने ही आस-पास निर्मित कर लिया है ।
सकारात्मक परिवर्तन जरुरी है----
मन को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है--- मनुष्य का आहार, उसका भोजन और वायुमंडल में निहित सूक्ष्म तत्व । जैसे आप हरियाली में, पहाड़ी स्थानों पर जायेंगे तो मन को अच्छा लगेगा,
लेकिन शमशान में जायेंगे या ऐसे पुराने कि ले में जहां लोगों को फांसी दी जाती थी, शारीरिक प्रताड़ना दी जाती थी, ऐसे स्थान पर अजीब सी नीरवता होगी, आपका मन भी वहां बेचैन हो जायेगा आज के समय में जगह-जगह पर अपराध, हत्या , युद्ध के समाचार हैं, हज़ारों-लाखों गायों को और अन्य मूक प्राणियों को काटा जाता है तों उन सबके चीत्कार से पूरा वतावरण विषाक्त है । लोगों के मन पर दोहरा आक्रमण है---- एक तो वातावरण विषाक्त है और दूसरा लोगों ने मांस खा कर अपना अंतर प्रदूषित कर लिया है । अब शान्ति कैसे मिले ?
विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली लेकिन आज भी मनुष्य की सोच आदिमानव जैसी है--- मांसाहार नहीं छोड़ रहे, शमशान का वातावरण अपने ही आस-पास निर्मित कर लिया है ।
सकारात्मक परिवर्तन जरुरी है----
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