सभी धर्मों में मांसाहार का निषेध है । सभी धर्मों के श्रेष्ठ गुरुओं ने जीव-हत्या को पाप कहा है और सख्ती से मांस खाने को मना किया है । इसकी वजह यही है कि मांस खाने से व्यक्ति निर्दयी हो जाता है और पशुवत व्यवहार करने लगता है ।
मनुष्य पर दुर्बुद्धि का प्रकोप है इसलिए सब कुछ सामने देखते हुए भी वह समझता नहीं है ।
विश्व का इतिहास युद्धों से भरा पड़ा है । दो विश्व युद्ध में कितने लोग मारे गये, भारत-पाकिस्तान विभाजन में कितना कत्लेआम हुआ, कारण कुछ भी हो, लेकिन मूल कारण मनुष्य की निर्दयता है, संवेदना समाप्त होने से ही मनुष्य पशुवत व्यवहार करता है ।
शेर-चीता आदि मांसाहारी जानवर मांस खा कर ही इतने क्रूर हैं कि उनके पास जाने से सबको डर लगता है ।
लेकिन जो पशु-पक्षी शाकाहारी हैं, उनसे किसी को डर नहीं लगता । यही बात मनुष्यों के साथ है, मांसाहार करने वाला क्रोधी स्वभाव का होता है, वह कब हिंसक हो जाये कोई नहीं जानता ।
लेकिन शाकाहारी व्यक्ति शांत प्रवृति का होता है, वह कभी किसी की हत्या नहीं करेगा, किसी का अहित नहीं करेगा ।
दुर्भाग्य यही है कि ऐसे शाकाहारी बहुत कम हैं ।
मांसाहार का संबंध किसी धर्म या जाति से नहीं होता । जिसके ह्रदय में दया नहीं, संवेदना नहीं, वही मांसाहार करता है । बहुत से लोग स्वयं को श्रेष्ठ समझते हैं और अपने को शाकाहारी कहते हैं लेकिन धन के लालच में अपनी गाय कसाई को दे देते हैं । ऐसे व्यक्ति भी मांसाहारी ही हैं ।
धरती पर शान्ति चाहिए तो हमें इनसान बनना होगा, अपने ह्रदय में दया, करुणा, संवेदना को जगाना होगा ।
मनुष्य पर दुर्बुद्धि का प्रकोप है इसलिए सब कुछ सामने देखते हुए भी वह समझता नहीं है ।
विश्व का इतिहास युद्धों से भरा पड़ा है । दो विश्व युद्ध में कितने लोग मारे गये, भारत-पाकिस्तान विभाजन में कितना कत्लेआम हुआ, कारण कुछ भी हो, लेकिन मूल कारण मनुष्य की निर्दयता है, संवेदना समाप्त होने से ही मनुष्य पशुवत व्यवहार करता है ।
शेर-चीता आदि मांसाहारी जानवर मांस खा कर ही इतने क्रूर हैं कि उनके पास जाने से सबको डर लगता है ।
लेकिन जो पशु-पक्षी शाकाहारी हैं, उनसे किसी को डर नहीं लगता । यही बात मनुष्यों के साथ है, मांसाहार करने वाला क्रोधी स्वभाव का होता है, वह कब हिंसक हो जाये कोई नहीं जानता ।
लेकिन शाकाहारी व्यक्ति शांत प्रवृति का होता है, वह कभी किसी की हत्या नहीं करेगा, किसी का अहित नहीं करेगा ।
दुर्भाग्य यही है कि ऐसे शाकाहारी बहुत कम हैं ।
मांसाहार का संबंध किसी धर्म या जाति से नहीं होता । जिसके ह्रदय में दया नहीं, संवेदना नहीं, वही मांसाहार करता है । बहुत से लोग स्वयं को श्रेष्ठ समझते हैं और अपने को शाकाहारी कहते हैं लेकिन धन के लालच में अपनी गाय कसाई को दे देते हैं । ऐसे व्यक्ति भी मांसाहारी ही हैं ।
धरती पर शान्ति चाहिए तो हमें इनसान बनना होगा, अपने ह्रदय में दया, करुणा, संवेदना को जगाना होगा ।
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