चापलूसी से दोहरी हानि है --- एक ओर तो चापलूसी करने वाले का स्वाभिमान समाप्त हो जाता है और मन में हीनता का भाव आ जाता है ।
चापलूसी के स्वभाव से सम्पूर्ण समाज को नुकसान पहुँचता है क्योंकि जिसकी चापलूसी की जाती है उसका अहंकार सातवें आसमान पर चढ़ जाता है और फिर वह अपनी शक्तियों का दुरूपयोग करने लगता है ।
अहंकारी व्यक्ति स्वयं को श्रेष्ठ समझता है और चाहता है हर कोई उसकी आधीनता में रहे , उसकी प्रशंसा करे , खुशामद करे । जो ऐसा नहीं करता उसको वह तरह - तरह से परेशान करता है ।
आज समाज में ऐसे ही व्यक्तियों की अधिकता है जो धन और पद के नशे में किसी को कुछ नहीं समझते ।
अहंकारी व्यक्ति को कितना भी समझाया जाये वह नहीं बदलता , ऐसा व्यक्ति किसी की सुनना ही नहीं चाहता ।
यदि समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपना कर्तव्य पालन करे , अपने छोटे - छोटे स्वार्थों को पूरा करने के लिए अधिकारी व नेताओं से न मिले तो उनका अहंकार इतना न बढ़े ।
हमें ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखना चाहिए । अपना कर्तव्य पालन ईमानदारी से करो तो खुशामद करने की जरुरत नहीं है । किसी का अहित न करो , किसी से कोई उम्मीद न करो और नियमित सत्कर्म करो तो इस अशांत संसार में भी शान्ति से रहा जा सकता है |
चापलूसी के स्वभाव से सम्पूर्ण समाज को नुकसान पहुँचता है क्योंकि जिसकी चापलूसी की जाती है उसका अहंकार सातवें आसमान पर चढ़ जाता है और फिर वह अपनी शक्तियों का दुरूपयोग करने लगता है ।
अहंकारी व्यक्ति स्वयं को श्रेष्ठ समझता है और चाहता है हर कोई उसकी आधीनता में रहे , उसकी प्रशंसा करे , खुशामद करे । जो ऐसा नहीं करता उसको वह तरह - तरह से परेशान करता है ।
आज समाज में ऐसे ही व्यक्तियों की अधिकता है जो धन और पद के नशे में किसी को कुछ नहीं समझते ।
अहंकारी व्यक्ति को कितना भी समझाया जाये वह नहीं बदलता , ऐसा व्यक्ति किसी की सुनना ही नहीं चाहता ।
यदि समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपना कर्तव्य पालन करे , अपने छोटे - छोटे स्वार्थों को पूरा करने के लिए अधिकारी व नेताओं से न मिले तो उनका अहंकार इतना न बढ़े ।
हमें ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखना चाहिए । अपना कर्तव्य पालन ईमानदारी से करो तो खुशामद करने की जरुरत नहीं है । किसी का अहित न करो , किसी से कोई उम्मीद न करो और नियमित सत्कर्म करो तो इस अशांत संसार में भी शान्ति से रहा जा सकता है |
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