आज के समय में धन और साधन-सुविधाओं के आधार पर किसी को सभ्य व आधुनिक माना जाता है । आज व्यक्ति को स्वयं के व्यवहार और कार्यों का अवलोकन करना चाहिए और हमें स्वयं ही सत्य को समझना है---- विकसित व सभ्य तो तब होंगे जब समाज में शान्ति होगी ।
यदि समाज में हत्या, लूटपाट, अपहरण व अन्य पाशविक अपराध हो रहे हैं तो यह सभ्य समाज का लक्षण नहीं है ।
यह तो सब आदिम-युग में भी था, जब साधन-सुविधाएँ नहीं थीं, मनुष्य रक्त-मिश्रित मांस खाता था, मदिरा पीकर शोर कर झूमता था ।
पढने-लिखने के बाद, वैज्ञानिक प्रगति के बाद भी मनुष्य का मन नहीं बदला, अधिकांश आदतों में आज भी वह आदिमानव है ।
विचारों और कार्य-व्यवहार का स्तर सुधारकर ही शान्ति संभव है ।
यदि समाज में हत्या, लूटपाट, अपहरण व अन्य पाशविक अपराध हो रहे हैं तो यह सभ्य समाज का लक्षण नहीं है ।
यह तो सब आदिम-युग में भी था, जब साधन-सुविधाएँ नहीं थीं, मनुष्य रक्त-मिश्रित मांस खाता था, मदिरा पीकर शोर कर झूमता था ।
पढने-लिखने के बाद, वैज्ञानिक प्रगति के बाद भी मनुष्य का मन नहीं बदला, अधिकांश आदतों में आज भी वह आदिमानव है ।
विचारों और कार्य-व्यवहार का स्तर सुधारकर ही शान्ति संभव है ।
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