कार्य के प्रति जैसी मनुष्य की भावना होगी वैसा ही परिणाम सामने आएगा जैसे आज शिक्षा प्राप्त करने का उद्देश्य है --- पढ़ - लिख कर खूब पैसे कमायें । ऐसी सोच होने से व्यक्ति चाहे जिस पद पर होगा , अनैतिक ढंग से पैसे कमाएगा । डॉक्टर हो , इंजीनियर हो , नेता , शिक्षक जो भी होगा उसका उद्देश्य केवल धन कमाना होगा , न ही वह अपना व्यक्तित्व बनाएगा और न ही लोक - कल्याण का कोई काम करेगा । यही स्थिति आज हमें समाज में देखने को मिलती है । लोग उच्च पदों पर हैं , बहुत धन कमा रहें हैं , सारी सुख - सुविधाएँ हैं लेकिन नशा , अनैतिकता , अपराध उनके जीवन का अंग बन चुका है , अब वे इससे बाहर ही नहीं निकलना चाहते ।
समाज सेवा की भी अनेक संस्थाएं हैं , लेकिन यदि उद्देश्य धन कमाना और यश प्राप्त करना है तो उसमे सेवा कम , समाज को बेवकूफ बनाना ज्यादा होता है ।
ऐसे वातावरण का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर होता है । कोई सही दिशा देने वाला न हो तो मनोरंजन के साधन भी बच्चों के कोमल मन को गलत राह पर धकेल देते हैं ।
प्रश्न ये है कि आखिर सुधार कैसे हो ? कमजोर को तो दंड मिल ही जाता है लेकिन जिनके पास पैसा है , शक्ति है वे दंड से बच जाते हैं ।
जो बड़ी उम्र के हैं , वे तो पक्के हो गये , अब सुधरना ही नहीं चाहते ।
एक रास्ता है ---- जो लोग वास्तव में समाज में शान्ति चाहते हैं , समाज में सुधार चाहते हैं वे छुट्टी के दिनों में जैसे रविवार को विशेष स्कूल चलाकर बच्चों को नैतिकता , सदाचार , सेवा , स्वच्छता , ईमानदारी , कर्तव्यपालन , सामाजिक बुराइयों के प्रति जागरूकता आदि की शिक्षा दें ।
बच्चों का सुधार , उनकी श्रेष्ठता देखकर बड़ों का मन कचोटने लगे , वे चुपचाप अपने किये का पश्चाताप करें और अपनी बुराइयों को सुधारने लगें । बच्चों की सरलता और पवित्रता में वह शक्ति है जो बड़ों को सुधार दे ।
समाज सेवा की भी अनेक संस्थाएं हैं , लेकिन यदि उद्देश्य धन कमाना और यश प्राप्त करना है तो उसमे सेवा कम , समाज को बेवकूफ बनाना ज्यादा होता है ।
ऐसे वातावरण का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर होता है । कोई सही दिशा देने वाला न हो तो मनोरंजन के साधन भी बच्चों के कोमल मन को गलत राह पर धकेल देते हैं ।
प्रश्न ये है कि आखिर सुधार कैसे हो ? कमजोर को तो दंड मिल ही जाता है लेकिन जिनके पास पैसा है , शक्ति है वे दंड से बच जाते हैं ।
जो बड़ी उम्र के हैं , वे तो पक्के हो गये , अब सुधरना ही नहीं चाहते ।
एक रास्ता है ---- जो लोग वास्तव में समाज में शान्ति चाहते हैं , समाज में सुधार चाहते हैं वे छुट्टी के दिनों में जैसे रविवार को विशेष स्कूल चलाकर बच्चों को नैतिकता , सदाचार , सेवा , स्वच्छता , ईमानदारी , कर्तव्यपालन , सामाजिक बुराइयों के प्रति जागरूकता आदि की शिक्षा दें ।
बच्चों का सुधार , उनकी श्रेष्ठता देखकर बड़ों का मन कचोटने लगे , वे चुपचाप अपने किये का पश्चाताप करें और अपनी बुराइयों को सुधारने लगें । बच्चों की सरलता और पवित्रता में वह शक्ति है जो बड़ों को सुधार दे ।
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