आज लोगों के मन इतने अशांत इसलिए हैं क्योंकि वे हर समय दूसरों में बुराई खोजा करते हैं । लोग स्वयं को सकारात्मक कार्यों में , सत्साहित्य पढने में व्यस्त नहीं रखते । अधिकांश लोग फुर्सत के समय में मित्रों के साथ बैठकर दूसरों की खिल्ली उड़ाना, निंदा करना , दूसरों को नीचा दिखाने और नुकसान पहुँचाने के लिए षड्यंत्र रचते हैं । परिपक्व आयु के व्यक्ति भी ऐसे ओछे कार्यों में अपनी उर्जा बर्बाद करते हैं । इस स्थिति को प्रत्येक व्यक्ति को सहजता से स्वीकार करना चाहिए
क्योंकि ईर्ष्या - द्वेष वश व्यक्ति ऐसे काम करते हैं । निंदा से हम परेशान न होकर स्वयं को सकरात्काक कार्यों में व्यस्त रखें l जो श्रेष्ठ है जिसके ऊँचे आदर्श हैं वह कभी निंदा करेगा नहीं । शान्ति से जीने का यही तरीका है कि स्वयं सन्मार्ग पर चले और लोग क्या कहते हैं इस पर ध्यान न दें ।
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