हम देखते हैं कि राक्षसी प्रवृति के लोग हर युग में रहे हैं जिन्होंने अपनी दुष्प्रवृतियों से समाज को उत्पीड़ित किया है । इनकी प्रवृतियों को बदलना बहुत कठिन है । जब तक व्यक्ति स्वयं न सुधारना चाहे , उसे भगवान भी नहीं सुधार सकते ।
इसलिए जरुरी है कि युग के अनुरूप हम स्वयं को बदले । अच्छे विचार और अच्छे कर्म का मतलब यह नहीं कि हम कायर बन जायें । हम कर्मयोगी बने । जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के प्रति स्वयं का जो कर्तव्य है उसका ईमानदारी से पालन करें । शान्ति से रहने के लिए बहुत जरुरी है कि अन्याय का सामना करें । अत्याचार को चुपचाप सहन न करें । प्रत्येक व्यक्ति जब स्थिर बुद्धि से अन्यायी का सामना करेगा , उनके हौसले पस्त करेगा , तभी उसका जीवन शान्ति से बीतेगा । ऐसे लोग जब अधिक होंगे तभी समाज में शान्ति होगी ।
इसलिए जरुरी है कि युग के अनुरूप हम स्वयं को बदले । अच्छे विचार और अच्छे कर्म का मतलब यह नहीं कि हम कायर बन जायें । हम कर्मयोगी बने । जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के प्रति स्वयं का जो कर्तव्य है उसका ईमानदारी से पालन करें । शान्ति से रहने के लिए बहुत जरुरी है कि अन्याय का सामना करें । अत्याचार को चुपचाप सहन न करें । प्रत्येक व्यक्ति जब स्थिर बुद्धि से अन्यायी का सामना करेगा , उनके हौसले पस्त करेगा , तभी उसका जीवन शान्ति से बीतेगा । ऐसे लोग जब अधिक होंगे तभी समाज में शान्ति होगी ।
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