आज के समय में व्यक्ति नेक कार्य तो बहुत करता है किन्तु धैर्य न होने के कारण वह उन्हें संचित नहीं करता है , उसका एक बड़ा भाग खर्च कर देता है जैसे कई लोग गाय पालते हैं , उसकी सेवा करते हैं , इसका पुण्य तो मिला लेकिन बदले में दूध बेचकर पैसा कमा लिया तो पुण्य बहुत कम संचित हो पाया । फिर वृद्ध गाय को भटकने को छोड़ दिया तो जो पुण्य था वह भी समाप्त हो गया । इसी तरह लोग बहुत बड़ी धन - राशि दान करते हैं उसके बदले में टैक्स में छूट ले लेते हैं । कई समाज कल्याण के काम अपना नाम , यश कमाने के लिए करते हैं ।
कुछ ऐसे सत्कर्म अवश्य करने चाहिए जिनका प्रतिफल देने का काम ईश्वर पर छोड़ दें । जीवन में अनेक विपत्तियाँ आती हैं । यदि हमारे पास पुण्यों का संचित भंडार है तो प्रकृति स्वयं उन पुण्यों से विपत्तियों को काट देती है । इससे उन विपत्तियों की चुभन बहुत कम हो जाती है ।
सुख - शान्ति से जीने के लिए सत्कर्मों का भंडार निरंतर भरते रहें ।
कुछ ऐसे सत्कर्म अवश्य करने चाहिए जिनका प्रतिफल देने का काम ईश्वर पर छोड़ दें । जीवन में अनेक विपत्तियाँ आती हैं । यदि हमारे पास पुण्यों का संचित भंडार है तो प्रकृति स्वयं उन पुण्यों से विपत्तियों को काट देती है । इससे उन विपत्तियों की चुभन बहुत कम हो जाती है ।
सुख - शान्ति से जीने के लिए सत्कर्मों का भंडार निरंतर भरते रहें ।
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