आज व्यक्ति सुख - शान्ति तो चाहता है लेकिन उस पर दुर्बुद्धि इस कदर हावी है कि वो भ्रष्टाचारी , आततायी , अनैतिक और अत्याचारी का ही पक्ष लेते हैं , उसे ही अपना पथ - प्रदर्शक समझते हैं और उन्ही को सम्मान देने में अपनी ऊर्जा व्यर्थ गंवाते हैं | ऐसे लोगों का बहुमत है | सद्गुणी व्यक्ति के साथ तो ऐसा सलूक होता है जैसे वो त्याज्य हो । जनसँख्या जिस तरह गुणात्मक दर से बढ़ती है उसी तरह दुष्टता भी बढ़ती जा रही है ऐसे में सुख - शान्ति कैसे मिले ?
इस संसार में युगों से अँधेरे और उजाले का संघर्ष चलता आ रहा है , यह सत्य है कि अँधेरे को हारना पड़ता है लेकिन उसे हराने के लिए अच्छाई को संगठित होना पड़ेगा , निष्काम कर्म से अपने आत्म बल को बढ़ाना होगा l यही वह शक्ति है जिससे दुष्टता को पराजित किया जा सकता है l
इस संसार में युगों से अँधेरे और उजाले का संघर्ष चलता आ रहा है , यह सत्य है कि अँधेरे को हारना पड़ता है लेकिन उसे हराने के लिए अच्छाई को संगठित होना पड़ेगा , निष्काम कर्म से अपने आत्म बल को बढ़ाना होगा l यही वह शक्ति है जिससे दुष्टता को पराजित किया जा सकता है l
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