आज के इस वैज्ञानिक युग में भी लोगों के मन में कर्मकांड की जड़ें इतनी गहरी घुसी हैं कि वे सोचते हैं कि कर्मकांड , बाह्य आडम्बर से ही ईश्वर प्रसन्न होते है । इस सोच को बदलना बहुत कठिन और असंभव है । लेकिन इस सोच को मजबूत आधार देकर लोगों की यह कल्पना कि ''कर्मकांड से ईश्वर प्रसन्न होते हैं ' सत्य सिद्ध हो सकती है । यदि व्यक्ति यह नियम बना ले कि पूजा - पाठ , प्रार्थना के बाद नियमित रूप से गरीबों को , पशु - पक्षियों को , जरुरतमंदों को कुछ न कुछ दान अवश्य करेगा । इस दान में कोई दिखावा नहीं , अहंकार नहीं ।
इस एक सद्गुण से ही अनेकों लाभ होंगे , , धैर्य और विश्वास चाहिए ।
इस एक सद्गुण से ही अनेकों लाभ होंगे , , धैर्य और विश्वास चाहिए ।
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