संसार में समय - समय पर आपदाएं आती रहती हैं , कुछ प्राकृतिक हैं तो अनेक दुर्घटनाएं मानवीय भूलों का परिणाम हैं l ऐसी दुर्घटनाओं में अनेक लोगों की मृत्यु हो जाती है अनेक परिवार बिखर जाते हैं l सबसे बड़ी बात यह है कि ये दुर्घटनाएं यह नहीं देखतीं कि --- किस दल को मारें , किस धर्म , किस समुदाय , नारी अथवा पुरुष किस पर प्रकोप दिखाएँ ? इन दुर्घटनाओं में तो अच्छे - बुरे , ऊँच - नीच , छोटे - बड़े , किसी पर भी विपत्ति आ सकती है l प्रत्येक मनुष्य जब अपने ---- अधिकार और कर्तव्य ---- दोनों के प्रति जागरूक होगा तभी समस्या हल हो सकती है l
Saturday, 30 September 2017
Friday, 29 September 2017
कर्तव्यपालन में ईमानदारी न होना
समाज में असमानता है
समाज में अनेक समस्याएं हैं , उनके मूल में एक ही कारण है कि जो व्यक्ति जहाँ लगा है वह ईमानदारी से काम नहीं कर रहा l लोग गरीबों से , मेहनत - मजदूरी करने वालों से और बहुत कम वेतन पाने वालों से ईमानदारी की उम्मीद करते हैं , थोड़ा भी काम गलत होने पर उनसे दुर्व्यवहार करते हैं l लेकिन ये वर्ग भी क्या करे ? जब देखते हैं कि एक से एक अमीर और समर्थ लोग अपनी जेब भरने में लगे हैं , ईमानदारी है ही नहीं , तो ये लोग भी अपने काम में लापरवाह रहते हैं , इस सत्य को स्वीकार करना होगा कि हम सब एक माला के मोती हैं , एक मोती भी खराब होगा तो माला तो माला सही नहीं रहेगी l
समाज में अनेक समस्याएं हैं , उनके मूल में एक ही कारण है कि जो व्यक्ति जहाँ लगा है वह ईमानदारी से काम नहीं कर रहा l लोग गरीबों से , मेहनत - मजदूरी करने वालों से और बहुत कम वेतन पाने वालों से ईमानदारी की उम्मीद करते हैं , थोड़ा भी काम गलत होने पर उनसे दुर्व्यवहार करते हैं l लेकिन ये वर्ग भी क्या करे ? जब देखते हैं कि एक से एक अमीर और समर्थ लोग अपनी जेब भरने में लगे हैं , ईमानदारी है ही नहीं , तो ये लोग भी अपने काम में लापरवाह रहते हैं , इस सत्य को स्वीकार करना होगा कि हम सब एक माला के मोती हैं , एक मोती भी खराब होगा तो माला तो माला सही नहीं रहेगी l
Wednesday, 27 September 2017
अशांति का कारण है ----- नारी - उत्पीड़न
जिस भी समाज में नारी को शारीरिक और मानसिक रूप से उत्पीड़ित किया जाता है , वहां अशान्ति होती है , विकास अवरुद्ध हो जाता है l परिवारों में महिलाओं पर दहेज़ हत्या , भ्रूण हत्या आदि अनेक कारणों से अत्याचार होते हैं l पढने- लिखने , नौकरी करने , स्वयं को सक्षम बनाने के लिए जब वे घर से बाहर जाती हैं तो वहां भी उत्पीड़न होता है l
नारी उत्पीड़न के लिए कोई एक विशेष वर्ग , विशेष धर्म , विशेष जाति, समूह जिम्मेदार नहीं है , इसका मुख्य कारण है पुरुषों की मानसिकता , उनकी शोषण करने और हुकूमत ज़माने की प्रवृति l समस्या इसलिए विकट हो गई है कि अब वासना , कामना और धन की तृष्णा ने पुरुषों में कायरता को बढ़ा दिया है l पहले के पुरुषों में स्वाभिमान था , वे महिलाओं से मदद लेना अपने पौरुष के विरुद्ध समझते थे लेकिन अब पुरुषों ने नारी - सुलभ कमजोरियों और उनके घर - बाहर के दोहरे दायित्व की उनकी व्यस्तता का लाभ उठाकर उन्हें भ्रष्टाचार का माध्यम बना लिया है l पहले केवल पुरुष भ्रष्टाचार में लिप्त थे लेकिन अब उन्होंने अपने दांवपेंच लगाकर महिलाओं को भी जोड़ लिया l इससे समाज में भ्रष्टाचार और अपराध दोनों बढ़े हैं l अनेक महिलाओं को तो इस बात का ज्ञान ही नहीं होता कि उनकी योग्यता और कुशलता का कोई फायदा उठा रहा है , कुछ को ज्ञान होता है लेकिन वे अपनी कमजोरियों के कारण चुप रहती हैं या यों कहें कि चक्रव्यूह में फंसकर निकलना मुश्किल होता है l कुछ महिलाएं जिनका विवेक जाग्रत है , जिन पर ईश्वर की कृपा है वे इस जाल से बच जाती हैं तो ' हारे हुए जुआरी ' की तरह पुरुष उसका जीना मुश्किल कर देते हैं l
नारी शिक्षित हो या न हो , परिवार में , समाज में उसका उत्पीड़न हर हाल में है l इस स्थिति से उबरने के लिए नारी को ही जागरूक होना पड़ेगा l शिक्षित होने के साथ ही जीवन जीने की कला का ज्ञान जरुरी है l माँ दुर्गा की पूजा ही पर्याप्त नहीं है , हमें सद्गुणों को अपने आचरण में लाना होगा l
नारी उत्पीड़न के लिए कोई एक विशेष वर्ग , विशेष धर्म , विशेष जाति, समूह जिम्मेदार नहीं है , इसका मुख्य कारण है पुरुषों की मानसिकता , उनकी शोषण करने और हुकूमत ज़माने की प्रवृति l समस्या इसलिए विकट हो गई है कि अब वासना , कामना और धन की तृष्णा ने पुरुषों में कायरता को बढ़ा दिया है l पहले के पुरुषों में स्वाभिमान था , वे महिलाओं से मदद लेना अपने पौरुष के विरुद्ध समझते थे लेकिन अब पुरुषों ने नारी - सुलभ कमजोरियों और उनके घर - बाहर के दोहरे दायित्व की उनकी व्यस्तता का लाभ उठाकर उन्हें भ्रष्टाचार का माध्यम बना लिया है l पहले केवल पुरुष भ्रष्टाचार में लिप्त थे लेकिन अब उन्होंने अपने दांवपेंच लगाकर महिलाओं को भी जोड़ लिया l इससे समाज में भ्रष्टाचार और अपराध दोनों बढ़े हैं l अनेक महिलाओं को तो इस बात का ज्ञान ही नहीं होता कि उनकी योग्यता और कुशलता का कोई फायदा उठा रहा है , कुछ को ज्ञान होता है लेकिन वे अपनी कमजोरियों के कारण चुप रहती हैं या यों कहें कि चक्रव्यूह में फंसकर निकलना मुश्किल होता है l कुछ महिलाएं जिनका विवेक जाग्रत है , जिन पर ईश्वर की कृपा है वे इस जाल से बच जाती हैं तो ' हारे हुए जुआरी ' की तरह पुरुष उसका जीना मुश्किल कर देते हैं l
नारी शिक्षित हो या न हो , परिवार में , समाज में उसका उत्पीड़न हर हाल में है l इस स्थिति से उबरने के लिए नारी को ही जागरूक होना पड़ेगा l शिक्षित होने के साथ ही जीवन जीने की कला का ज्ञान जरुरी है l माँ दुर्गा की पूजा ही पर्याप्त नहीं है , हमें सद्गुणों को अपने आचरण में लाना होगा l
Tuesday, 26 September 2017
मनुष्य को स्वयं ही सुधरना होगा
समाज में अशांति हो , लोग मर्यादाहीन आचरण कर रहे हों , असुरता बढ़ रही हो ---- और हम सोचें कि भगवान आयेंगे , फिर सब ठीक हो जायेगा --- यह असंभव है l महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार , उन्हें अपमानित व उपेक्षित करना ---- ये सब ऐसी बातें हैं जिनका प्रभाव दीर्घकालीन होता है और ये घटनाएँ परिवार , समाज सब जगह अशांति उत्पन्न करती है l
पुरुषों ने युगों से नारी को अपनी दासी समझा है और हर तरह से अत्याचार किया है l अनेक महान पुरुषों के प्रयासों से जब महिलाएं आगे बढ़ रही हैं तो अब पुरुष वर्ग यह सहन नहीं कर पा रहा , उनकी नारी जाति के प्रति ईर्ष्या बढ़ गई है l बाहरी जीवन में पुरुष केवल उन्ही महिलाओं की उपस्थिति को स्वीकार करते हैं जो उनके भ्रष्टाचार में सहयोग दे , उनके इशारों पर काम करे महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं से नारी तो अपमानित , उत्पीड़ित होती है , ऐसी घटनाओं से सम्पूर्ण पुरुष जाति नारी की निगाहों में अपना सम्मान खो देती है l नारी को तो अपमान , उपेक्षा सहने की आदत बन चुकी है , लेकिन जब पुरुष वर्ग को सम्मान नहीं मिलता तो उनमे हीनता का भाव पैदा हो जाता है l
ऐसी समस्या से निपटने के लिए समाज के सम्भ्रांत पुरुषों को ही आगे आना होगा जो मर्यादाहीन आचरण करने वाले लोगों पर लगाम लगायें l श्रेष्ठ आचरण से ही समाज में सुधार संभव है , ' बाबाओं ' ने तो समाज को पतन के गर्त में धकेलने में कोई कसर नहीं छोड़ी l
पुरुषों ने युगों से नारी को अपनी दासी समझा है और हर तरह से अत्याचार किया है l अनेक महान पुरुषों के प्रयासों से जब महिलाएं आगे बढ़ रही हैं तो अब पुरुष वर्ग यह सहन नहीं कर पा रहा , उनकी नारी जाति के प्रति ईर्ष्या बढ़ गई है l बाहरी जीवन में पुरुष केवल उन्ही महिलाओं की उपस्थिति को स्वीकार करते हैं जो उनके भ्रष्टाचार में सहयोग दे , उनके इशारों पर काम करे महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं से नारी तो अपमानित , उत्पीड़ित होती है , ऐसी घटनाओं से सम्पूर्ण पुरुष जाति नारी की निगाहों में अपना सम्मान खो देती है l नारी को तो अपमान , उपेक्षा सहने की आदत बन चुकी है , लेकिन जब पुरुष वर्ग को सम्मान नहीं मिलता तो उनमे हीनता का भाव पैदा हो जाता है l
ऐसी समस्या से निपटने के लिए समाज के सम्भ्रांत पुरुषों को ही आगे आना होगा जो मर्यादाहीन आचरण करने वाले लोगों पर लगाम लगायें l श्रेष्ठ आचरण से ही समाज में सुधार संभव है , ' बाबाओं ' ने तो समाज को पतन के गर्त में धकेलने में कोई कसर नहीं छोड़ी l
Friday, 22 September 2017
अशांति का कारण है -- मनुष्य सरल रास्ते से तरक्की चाहता है
धन - दौलत और पद - प्रतिष्ठा हर व्यक्ति चाहता है l महत्वाकांक्षी होना अच्छी बात है , लेकिन आज के समय में लोगों में धैर्य नहीं है , सब कुछ बिना मेहनत के और बहुत जल्दी पा लेना चाहते हैं l इसके लिए ऐसे लोगों के पास एक ही तरीका है --- जिसके माध्यम से सब कुछ अति शीघ्र हासिल हो सके , उसकी खुशामद करो l लोग इस कदर चापलूसी करते हैं जैसे वह व्यक्ति भगवान हो , जिसमे उनके भाग्य बदलने की क्षमता हो l
इस एक दोष के कारण समाज का वातावरण दूषित होता है l जिसकी चापलूसी की जाती है उसका अहंकार उसके सिर चढ़ जाता है वह सब पर अपनी हुकूमत चलाना चाहता है l
जो चापलूसी करता है वह धन - सम्पदा तो इकट्ठी कर लेता है लेकिन अपनी योग्यता नहीं बढ़ाता, उसका व्यक्तित्व खोखला हो जाता है l वह भी अपने लिए चापलूसों की भीड़ चाहता है और इसके लिए हर प्रकार के तरीके अपनाता है , इसी कारण समाज में अशांति होती है l
इस एक दोष के कारण समाज का वातावरण दूषित होता है l जिसकी चापलूसी की जाती है उसका अहंकार उसके सिर चढ़ जाता है वह सब पर अपनी हुकूमत चलाना चाहता है l
जो चापलूसी करता है वह धन - सम्पदा तो इकट्ठी कर लेता है लेकिन अपनी योग्यता नहीं बढ़ाता, उसका व्यक्तित्व खोखला हो जाता है l वह भी अपने लिए चापलूसों की भीड़ चाहता है और इसके लिए हर प्रकार के तरीके अपनाता है , इसी कारण समाज में अशांति होती है l
Wednesday, 20 September 2017
WISDOM ----- वेश - विन्यास से अपनी राष्ट्रीयता और संस्कृति का परिचय मिलता है
चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि तंग वस्त्र और शरीर का प्रदर्शन करने वाले वस्त्र स्वास्थ्य की द्रष्टि से उपयुक्त नहीं हैं l अपनी संस्कृति के प्रति श्रद्धा रखने वाले लोगों का विचार है कि ऐसे वस्त्रों में विवेकहीनता और फूहड़पन झलकता है l अपने देश , अपनी संस्कृति के अनुरूप पहनावा ही इस बात कि सूचना देता है कि हम राजनीतिक रूप से ही नहीं , मानसिक और संस्कृतिक रूप से भी स्वतंत्र हैं l
बात उन दिनों कि है जब विश्वविख्यात रसायन वैज्ञानिक डॉ. प्रफुल्लचंद्र राय कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे l पूरे देश में स्वाधीनता के लिए राष्ट्रीय भावनाएं हिलोरें ले रहीं थीं l डॉ. प्रफुल्लचंद्र राय का अंतर्मन इनसे अछूता न रह सका l अपने वैज्ञानिक कार्यों के बीच राष्ट्र प्रेम को किस तरह निभाएं ? यह जानने के लिए वे गांधीजी से मिलने गए l
गांधीजी ने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा और कहा --- " राय महाशय ! इतनी भी जल्दी क्या थी जो आप ऐसे ही चले आये l " महात्मा गाँधी कि बात ने उन्हें हैरानी में डाल दिया , तब गांधीजी ने कहा ---- ------ " विदेशी ढंग के कपड़े पहन कर सही ढंग से राष्ट्र सेवा नहीं की जा सकती l राष्ट्रीय मूल्य , राष्ट्रीय भावनाएं एवं राष्ट्रीय संस्कृति , इन सबकी एक ही पहचान है , अपना राष्ट्रीय वेश - विन्यास l " अब बापू बातें प्रोफेसर राय की समझ में आ गईं l उस दिन से उन्होंने अपना पहनावा पूरी तरह बदल डाला l देशी खद्दर का देशी पहनावा जीवन के अंतिम क्षणों तक उनका साथी रहा l
बात उन दिनों कि है जब विश्वविख्यात रसायन वैज्ञानिक डॉ. प्रफुल्लचंद्र राय कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे l पूरे देश में स्वाधीनता के लिए राष्ट्रीय भावनाएं हिलोरें ले रहीं थीं l डॉ. प्रफुल्लचंद्र राय का अंतर्मन इनसे अछूता न रह सका l अपने वैज्ञानिक कार्यों के बीच राष्ट्र प्रेम को किस तरह निभाएं ? यह जानने के लिए वे गांधीजी से मिलने गए l
गांधीजी ने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा और कहा --- " राय महाशय ! इतनी भी जल्दी क्या थी जो आप ऐसे ही चले आये l " महात्मा गाँधी कि बात ने उन्हें हैरानी में डाल दिया , तब गांधीजी ने कहा ---- ------ " विदेशी ढंग के कपड़े पहन कर सही ढंग से राष्ट्र सेवा नहीं की जा सकती l राष्ट्रीय मूल्य , राष्ट्रीय भावनाएं एवं राष्ट्रीय संस्कृति , इन सबकी एक ही पहचान है , अपना राष्ट्रीय वेश - विन्यास l " अब बापू बातें प्रोफेसर राय की समझ में आ गईं l उस दिन से उन्होंने अपना पहनावा पूरी तरह बदल डाला l देशी खद्दर का देशी पहनावा जीवन के अंतिम क्षणों तक उनका साथी रहा l
Tuesday, 19 September 2017
संस्कृति की रक्षा जरुरी है
भारतीय संस्कृति को मिटाने के अनेकों प्रयास हुए लेकिन ' कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी l '
आज हम सबको जागरूक होने की जरुरत है l कहीं दंगा हो , बम विस्फोट हो , दहशत की वजह से जानमाल की हानि हो तो उस क्षेत्र विशेष के लोग उस घटना को भूल नहीं पाते l डर उनके ह्रदय में समां जाता है , सामान्य स्थिति में आने में बहुत समय लग जाता है l
हम बच्चों के कोमल मन की कल्पना कर सकते हैं , स्कूलों में बच्चों को टार्चर किया जाये , किसी बच्चे का मर्डर हो जाये , अज्ञात कारण से किसी बच्चे की स्कूल में मृत्यु हो जाये तो ऐसी घटनाओं का सीधा प्रभाव बच्चों के आत्मविश्वास पर पड़ता है , वे भयभीत रहने लगते हैं , उनका सही मानसिक विकास नहीं हो पाता , आत्मविश्वास डगमगाने लगता है l ऐसी घटनाएँ बच्चों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को प्रभावित करती है l
एक देश का वैभव उसका कुशल और आत्मविश्वास से भरपूर मानवीय संसाधन है l आज के बच्चे ही , कल देश की कार्यशील जनसँख्या हैं , देश का भविष्य हैं l ऐसे आतंकियों से उनकी रक्षा करना , उन्हें संरक्षण देना अनिवार्य है l
आज हम सबको जागरूक होने की जरुरत है l कहीं दंगा हो , बम विस्फोट हो , दहशत की वजह से जानमाल की हानि हो तो उस क्षेत्र विशेष के लोग उस घटना को भूल नहीं पाते l डर उनके ह्रदय में समां जाता है , सामान्य स्थिति में आने में बहुत समय लग जाता है l
हम बच्चों के कोमल मन की कल्पना कर सकते हैं , स्कूलों में बच्चों को टार्चर किया जाये , किसी बच्चे का मर्डर हो जाये , अज्ञात कारण से किसी बच्चे की स्कूल में मृत्यु हो जाये तो ऐसी घटनाओं का सीधा प्रभाव बच्चों के आत्मविश्वास पर पड़ता है , वे भयभीत रहने लगते हैं , उनका सही मानसिक विकास नहीं हो पाता , आत्मविश्वास डगमगाने लगता है l ऐसी घटनाएँ बच्चों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को प्रभावित करती है l
एक देश का वैभव उसका कुशल और आत्मविश्वास से भरपूर मानवीय संसाधन है l आज के बच्चे ही , कल देश की कार्यशील जनसँख्या हैं , देश का भविष्य हैं l ऐसे आतंकियों से उनकी रक्षा करना , उन्हें संरक्षण देना अनिवार्य है l
Monday, 18 September 2017
अन्याय और अत्याचार समाप्त क्यों नहीं होता ?
अपराधी यदि पकड़ में न आये , उसे दंड का भय न हो , तो उनके हौसले बुलंद हो जाते हैं और उनके भीतर कायरता बढ़ती जाती है l बच्चों की हत्या करना कायरता की चरम सीमा है l न्याय की अपनी एक प्रक्रिया है l अपराध इसलिए बढ़ते हैं क्योंकि समाज संगठित रूप से अपराधियों का बहिष्कार नहीं करता l बुरे से बुरा व्यक्ति भी समाज में अपनी प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए चेहरे पर शराफत का नकाब ओढ़े रहता है l समाज के लोग उसकी असलियत को जानते भी हैं लेकिन अपने छोटे - छोटे स्वार्थ के लिए वे उससे जुड़े रहते हैं , ' गिव एंड टेक ' चलता रहता है जनता जागरूक होगी , संगठित होगी तभी समस्याओं से मुक्ति है l विज्ञान ने मनुष्य को इतना बुद्धिमान बना दिया है कि ' कठपुतली ' की डोर किसके हाथ में है , यह जानना कठिन है l
Friday, 15 September 2017
वर्तमान के आधार पर ही भविष्य का निर्माण होता है
सुनहरे भविष्य के लिए हमें वर्तमान में ही प्रयास करना होगा l बालक - बालिकाओं का जीवन सुरक्षित न हो , युवा पीढ़ी के जीवन को सही दिशा न हो , अश्लीलता अपने चरम पर हो और जो समर्थ हैं वे धन , पद और प्रतिष्ठा की अंधी दौड़ में लगे हों , तो भविष्य कैसा होगा ?
आज लोगों का अहंकार इस कदर बढ़ गया है कि वे बच्चों को निशाना बना कर , देश के भविष्य पर , संस्कृति पर वार कर अपने अहंकार को पोषित कर रहे हैं l
जिस प्रकार दंड का भय न होने से व्यक्ति अपराध करता है , अनैतिक और अमानवीय कार्य करता है , यदि कठोर दंड का भय हो तो लोग अपराध करने से डरेंगे जिससे वातावरण में सुधार होगा l
आज लोगों का अहंकार इस कदर बढ़ गया है कि वे बच्चों को निशाना बना कर , देश के भविष्य पर , संस्कृति पर वार कर अपने अहंकार को पोषित कर रहे हैं l
जिस प्रकार दंड का भय न होने से व्यक्ति अपराध करता है , अनैतिक और अमानवीय कार्य करता है , यदि कठोर दंड का भय हो तो लोग अपराध करने से डरेंगे जिससे वातावरण में सुधार होगा l
Thursday, 14 September 2017
संवेदनहीन समाज में अशान्ति होती है
अब लोगों में संवेदना समाप्त हो गई है और कायरता बढ़ गई है l भ्रूण हत्या , छोटी बच्चियों के साथ अनैतिक कार्य , स्कूल में पढने वाले बच्चों की निर्मम हत्या ---- यह सब व्यक्ति की कायरता के प्रमाण हैं l बाहरी आतंकवाद को तो सैन्य शक्ति मजबूत कर के रोका जा सकता है लेकिन देश के भीतर ही पीछे से वार करने वाले आतंकियों को रोकने से ही समाज में शान्ति होगी l जिनके ह्रदय में संवेदना सूख गई है , तो इस संवेदना को जगाने का , पुन: हरा - भरा करने का कोई तरीका नहीं है l केवल एक ही रास्ता है --- ऐसे अपराधियों को कठोर और शीघ्र दण्ड दिया जाये l समाज को जागरूक होना पड़ेगा , जो लोग अपराधियों को संरक्षण देते हैं उनका सामूहिक बहिष्कार करें l
Wednesday, 13 September 2017
बच्चों तुम तकदीर हो कल ------- ?--? __-- ?---
बच्चे ही किसी देश का भविष्य होते हैं लेकिन जहाँ छोटी सी उम्र के कोमल बच्चों को मार दिया जाता हो , ऐसी घटनाओं से अन्य बच्चे भयभीत हों और भय के वातावरण में पल कर युवा हों तो वह समाज कैसा होगा ? इसकी कल्पना की जा सकती है l
दंड का भय समाप्त हो जाये , अपराधियों को संरक्षण देने वाले अनेक ' आका ' हों तो ये अपराध कैसे रुकेंगे l सर्वप्रथम हमें ऐसे लोगों को ' जो छुप कर निहत्थे और मासूम बच्चों ' की अमानवीय तरीके से हत्या करते हैं , और जो इन्हें पनाह देते हैं , उन्हें एक ' नाम ' देना पड़ेगा क्योंकि यह केवल हत्या नहीं है , देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ है l
दंड का भय समाप्त हो जाये , अपराधियों को संरक्षण देने वाले अनेक ' आका ' हों तो ये अपराध कैसे रुकेंगे l सर्वप्रथम हमें ऐसे लोगों को ' जो छुप कर निहत्थे और मासूम बच्चों ' की अमानवीय तरीके से हत्या करते हैं , और जो इन्हें पनाह देते हैं , उन्हें एक ' नाम ' देना पड़ेगा क्योंकि यह केवल हत्या नहीं है , देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ है l
Sunday, 10 September 2017
सुख - शान्ति से जीने का एक ही रास्ता ----- निष्काम कर्म
प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन अपने लिए सुन्दर दुनिया स्वयं बनानी पड़ती है l सुख - शान्ति से वही व्यक्ति जीवन जी सकता है जिसके पास विवेक हो , सद्बुद्धि हो l सद्बुद्धि कहीं बाजार में नहीं मिलती और न ही इसे कोई सिखा सकता है l लोभ , लालच , स्वार्थ , ईर्ष्या, अहंकार , झूठ , बेईमानी , धोखा , अनैतिक कार्य जैसे दुर्गुणों को त्यागने का प्रयास करने के साथ जब कोई निष्काम कर्म करता है , तब धीरे - धीरे उसके ये विकार दूर होते है और निर्मल मन होने पर ईश्वर की कृपा से उसको सद्बुद्धि मिलती है l सद्बुद्धि न होने पर संसार के सारे वैभव होने पर भी व्यक्ति अशांत रहता है l अपनी दुर्बुद्धि के कारण छोटी सी समस्या को बहुत बड़ी समस्या बना लेता है l
इसलिए जरुरी है कि बचपन से ही बच्चों में छोटे - छोटे पुण्य कार्य करने की आदत डाली जाये l अधिकांश लोग कर्मकांड को , पूजा -पाठ को ही पुण्य कार्य समझते हैं , कोरे कर्मकांड का कोई प्रतिफल नहीं होता l छोटी उम्र से ही यदि बच्चों में पक्षियों को दाना देना , पुराने वस्त्र आदि जरूरतमंद को देना जैसे पुण्य कार्य की आदत हो जाये तो उसका सकारात्मक प्रभाव पूरे जीवन पर पड़ता है l
इसलिए जरुरी है कि बचपन से ही बच्चों में छोटे - छोटे पुण्य कार्य करने की आदत डाली जाये l अधिकांश लोग कर्मकांड को , पूजा -पाठ को ही पुण्य कार्य समझते हैं , कोरे कर्मकांड का कोई प्रतिफल नहीं होता l छोटी उम्र से ही यदि बच्चों में पक्षियों को दाना देना , पुराने वस्त्र आदि जरूरतमंद को देना जैसे पुण्य कार्य की आदत हो जाये तो उसका सकारात्मक प्रभाव पूरे जीवन पर पड़ता है l
Saturday, 9 September 2017
दंड का भय न होने से समाज में अशांति बढती है
हमारे आचार्य , ऋषि - मुनि का कहना था कि अपराधियों को कभी माफी नहीं मिलनी चाहिए l इसका समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है , लोगों में दंड का भय समाप्त हो जाता है l
आज के समय में लोग बड़े - बड़े अपराध करते हैं और समर्थ लोगों से अपना जुड़ाव रख कर सजा से बच जाते हैं l यदि पकडे भी गए तो जमानत पर छूट गए और वर्षों तक खुले घूमते हैं , ठाठ - बाट का जीवन जीते हैं l उनके सहारे अनेक लोगों के गैर - क़ानूनी धन्धे और काले - कारनामे चलते हैं l ऐसे में अपराधियों की श्रंखला बहुत बड़ी हो जाती है l
आज के समय में लोग बड़े - बड़े अपराध करते हैं और समर्थ लोगों से अपना जुड़ाव रख कर सजा से बच जाते हैं l यदि पकडे भी गए तो जमानत पर छूट गए और वर्षों तक खुले घूमते हैं , ठाठ - बाट का जीवन जीते हैं l उनके सहारे अनेक लोगों के गैर - क़ानूनी धन्धे और काले - कारनामे चलते हैं l ऐसे में अपराधियों की श्रंखला बहुत बड़ी हो जाती है l
Wednesday, 6 September 2017
अशान्ति का कारण है ----- भय
यह भी एक आश्चर्य है कि समाज में भयभीत वे लोग होते हैं जिनके पास धन , पद - प्रतिष्ठा सब कुछ होता है l उन्हें हर वक्त उसके खोने का भय सताता रहता है l रावण के पास सोने की लंका थी , शनि , राहु, केतु सब उसके वश में थे लेकिन वो वनवासी राम से भयभीत था l ऐसे ही दुर्योधन था , उसने पांडवों का छल से राज्य हड़प लिया , उन्हें वनवास दे दिया लेकिन फिर भी वह उनसे भयभीत था , उन्हें समाप्त करने की नई- नई चालें चलता था l
जब तक मनुष्य में अहंकार का दुर्गुण है , उसका यह भय समाप्त नहीं होगा l जब किसी के पास थोड़ी सी भी ताकत आ जाती है , चाहे वह किसी छोटी सी संस्था या किसी भी छोटे - बड़े क्षेत्र में हो , यह ताकत उसे अहंकारी बना देती है l वह चाहता है सब उसके हिसाब से चलें l अहंकारी भीतर से बड़ा कमजोर होता है , उसे हमेशा अपनी इस ' ताकत ' के खोने का भय सताता है l वह नहीं चाहता कि कोई जागरूक हो जाये , उसके विरुद्ध खड़ा हो l अहंकारी व्यक्ति हमेशा अपने अहंकार की तुष्टि का प्रयास करते हैं ,लेकिन कभी संतुष्ट हो नहीं पाते l उनका यह अहंकार स्वयं उन्हें भी कचोटता है और समाज में अशांति पैदा करता है l
जब तक मनुष्य में अहंकार का दुर्गुण है , उसका यह भय समाप्त नहीं होगा l जब किसी के पास थोड़ी सी भी ताकत आ जाती है , चाहे वह किसी छोटी सी संस्था या किसी भी छोटे - बड़े क्षेत्र में हो , यह ताकत उसे अहंकारी बना देती है l वह चाहता है सब उसके हिसाब से चलें l अहंकारी भीतर से बड़ा कमजोर होता है , उसे हमेशा अपनी इस ' ताकत ' के खोने का भय सताता है l वह नहीं चाहता कि कोई जागरूक हो जाये , उसके विरुद्ध खड़ा हो l अहंकारी व्यक्ति हमेशा अपने अहंकार की तुष्टि का प्रयास करते हैं ,लेकिन कभी संतुष्ट हो नहीं पाते l उनका यह अहंकार स्वयं उन्हें भी कचोटता है और समाज में अशांति पैदा करता है l
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