जिस भी समाज में नारी को शारीरिक और मानसिक रूप से उत्पीड़ित किया जाता है , वहां अशान्ति होती है , विकास अवरुद्ध हो जाता है l परिवारों में महिलाओं पर दहेज़ हत्या , भ्रूण हत्या आदि अनेक कारणों से अत्याचार होते हैं l पढने- लिखने , नौकरी करने , स्वयं को सक्षम बनाने के लिए जब वे घर से बाहर जाती हैं तो वहां भी उत्पीड़न होता है l
नारी उत्पीड़न के लिए कोई एक विशेष वर्ग , विशेष धर्म , विशेष जाति, समूह जिम्मेदार नहीं है , इसका मुख्य कारण है पुरुषों की मानसिकता , उनकी शोषण करने और हुकूमत ज़माने की प्रवृति l समस्या इसलिए विकट हो गई है कि अब वासना , कामना और धन की तृष्णा ने पुरुषों में कायरता को बढ़ा दिया है l पहले के पुरुषों में स्वाभिमान था , वे महिलाओं से मदद लेना अपने पौरुष के विरुद्ध समझते थे लेकिन अब पुरुषों ने नारी - सुलभ कमजोरियों और उनके घर - बाहर के दोहरे दायित्व की उनकी व्यस्तता का लाभ उठाकर उन्हें भ्रष्टाचार का माध्यम बना लिया है l पहले केवल पुरुष भ्रष्टाचार में लिप्त थे लेकिन अब उन्होंने अपने दांवपेंच लगाकर महिलाओं को भी जोड़ लिया l इससे समाज में भ्रष्टाचार और अपराध दोनों बढ़े हैं l अनेक महिलाओं को तो इस बात का ज्ञान ही नहीं होता कि उनकी योग्यता और कुशलता का कोई फायदा उठा रहा है , कुछ को ज्ञान होता है लेकिन वे अपनी कमजोरियों के कारण चुप रहती हैं या यों कहें कि चक्रव्यूह में फंसकर निकलना मुश्किल होता है l कुछ महिलाएं जिनका विवेक जाग्रत है , जिन पर ईश्वर की कृपा है वे इस जाल से बच जाती हैं तो ' हारे हुए जुआरी ' की तरह पुरुष उसका जीना मुश्किल कर देते हैं l
नारी शिक्षित हो या न हो , परिवार में , समाज में उसका उत्पीड़न हर हाल में है l इस स्थिति से उबरने के लिए नारी को ही जागरूक होना पड़ेगा l शिक्षित होने के साथ ही जीवन जीने की कला का ज्ञान जरुरी है l माँ दुर्गा की पूजा ही पर्याप्त नहीं है , हमें सद्गुणों को अपने आचरण में लाना होगा l
नारी उत्पीड़न के लिए कोई एक विशेष वर्ग , विशेष धर्म , विशेष जाति, समूह जिम्मेदार नहीं है , इसका मुख्य कारण है पुरुषों की मानसिकता , उनकी शोषण करने और हुकूमत ज़माने की प्रवृति l समस्या इसलिए विकट हो गई है कि अब वासना , कामना और धन की तृष्णा ने पुरुषों में कायरता को बढ़ा दिया है l पहले के पुरुषों में स्वाभिमान था , वे महिलाओं से मदद लेना अपने पौरुष के विरुद्ध समझते थे लेकिन अब पुरुषों ने नारी - सुलभ कमजोरियों और उनके घर - बाहर के दोहरे दायित्व की उनकी व्यस्तता का लाभ उठाकर उन्हें भ्रष्टाचार का माध्यम बना लिया है l पहले केवल पुरुष भ्रष्टाचार में लिप्त थे लेकिन अब उन्होंने अपने दांवपेंच लगाकर महिलाओं को भी जोड़ लिया l इससे समाज में भ्रष्टाचार और अपराध दोनों बढ़े हैं l अनेक महिलाओं को तो इस बात का ज्ञान ही नहीं होता कि उनकी योग्यता और कुशलता का कोई फायदा उठा रहा है , कुछ को ज्ञान होता है लेकिन वे अपनी कमजोरियों के कारण चुप रहती हैं या यों कहें कि चक्रव्यूह में फंसकर निकलना मुश्किल होता है l कुछ महिलाएं जिनका विवेक जाग्रत है , जिन पर ईश्वर की कृपा है वे इस जाल से बच जाती हैं तो ' हारे हुए जुआरी ' की तरह पुरुष उसका जीना मुश्किल कर देते हैं l
नारी शिक्षित हो या न हो , परिवार में , समाज में उसका उत्पीड़न हर हाल में है l इस स्थिति से उबरने के लिए नारी को ही जागरूक होना पड़ेगा l शिक्षित होने के साथ ही जीवन जीने की कला का ज्ञान जरुरी है l माँ दुर्गा की पूजा ही पर्याप्त नहीं है , हमें सद्गुणों को अपने आचरण में लाना होगा l
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