आज हम वैज्ञानिक युग में जी रहें है---- यह सत्य है कि जब हम भोजन करते हैं तभी हमारा पेट भरता है, भूख शांत होती है, जब पानी पीते हें तो प्यास बुझती है, जब परिश्रम करते हैं तभी वेतन, मजदूरी मिलती है---- इसका अर्थ हुआ कि अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए हमे स्वयं प्रयास करना पड़ता है । हमारी सबसे बड़ी जरुरत है कि हमें तनाव ना हो, हम शांति से रहें, जीवन में आने वाली विभिन्न कठिनाइयाँ आसानी से हल हो जायें । इतनी बडी जरुरत के लिए हम स्वयं मेहनत नहीं करते, पैसा खर्च करके संबंधित व्यक्ति से ग्रह-शान्ति के लिए पूजा-पाठ, जप-तप कराते हैं । यह कैसे संभव है कि कोई दूसरा भोजन करे तो हमारा पेट भर जाये, कोई दूसरा जप-तप करे तो हमारी समस्या हल हो जाये ।
आज सबकी दिनचर्या बहुत व्यस्त है, हम अपनी धार्मिक परम्पराओं को, जीवित रखने के लिए कुछ कर्मकांड स्वयं कर लें और फिर दिन भर वास्तविक पूजा करें । यह वास्तविक पूजा है--- चलते-फ़िरते, उठते-बैठते ईश्वर को याद करें, प्रत्येक कार्य को ईश्वर का दिया समझकर ईमानदारी से कर्तव्य पालन करें, अपनी जो बुरी आदते हैं उन्हें दूर करने का निरंतर प्रयास करें और व्यस्त जीवन में कुछ सत्कर्म अवशय करें । ऐसा करके आप अपने जीवन में सुकून और ईश्वर की कृपा को अनुभव करेंगे ।
आज सबकी दिनचर्या बहुत व्यस्त है, हम अपनी धार्मिक परम्पराओं को, जीवित रखने के लिए कुछ कर्मकांड स्वयं कर लें और फिर दिन भर वास्तविक पूजा करें । यह वास्तविक पूजा है--- चलते-फ़िरते, उठते-बैठते ईश्वर को याद करें, प्रत्येक कार्य को ईश्वर का दिया समझकर ईमानदारी से कर्तव्य पालन करें, अपनी जो बुरी आदते हैं उन्हें दूर करने का निरंतर प्रयास करें और व्यस्त जीवन में कुछ सत्कर्म अवशय करें । ऐसा करके आप अपने जीवन में सुकून और ईश्वर की कृपा को अनुभव करेंगे ।
No comments:
Post a Comment