आज संसार में विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति तो बहुत हुई है, लेकिन शान्ति न होने से उस प्रगति में, सुख-सुविधाओं में आनंद नहीं है । अनीति, अन्याय, भ्रष्टाचार, शोषण के विरुद्ध संगठित होकर कोई नहीं लड़ता, लोग ऐसी बातों पर लड़ते हैं जिनके पीछे कोई ठोस आधार नहीं है जैसे-- लोग धर्म के नाम पर लड़ते है ! धर्म तो सभी अच्छे हैं, सभी धर्मों में श्रेष्ठ विचार है, पवित्र भाव हैं, महान धर्म गुरु हैं । एक ही ईश्वर विभिन्न रूपों में सब जगह विद्दमान है ।
' ईश्वर सर्वगुणसंपन्न, श्रेष्ठता का सम्मुचय हैं '
हमें इस सत्य को समझना होगा कि हमारा कार्य-व्यवहार, हमारा आचरण, हमारा समूचा व्यक्तित्व हमारे धर्म को प्रतिबिंबित करता है । यदि किसी धर्म के अधिकांश लोगों में दया, करुणा, संवेदना, ईमानदारी, कर्तव्यपालन, मानवीयता आदि सद्गुण हैं तो यह माना जायेगा कि वह धर्म बहुत श्रेष्ठ है, उस धर्म को मानने वाले लोग बहुत अच्छे होते हैं ।
धर्म के नाम पर लूट, शोषण और अत्याचार कर हम अपने ही धर्म के बारे में लोगों की गलत धारणा न बनने दे ।
हमारे पास एक ही जीवन है, श्रेष्ठ गुणों को, मानवीय मूल्यों कों अपनाकर जीवन को सार्थक करें, यही सच्ची धार्मिकता है ।
' ईश्वर सर्वगुणसंपन्न, श्रेष्ठता का सम्मुचय हैं '
हमें इस सत्य को समझना होगा कि हमारा कार्य-व्यवहार, हमारा आचरण, हमारा समूचा व्यक्तित्व हमारे धर्म को प्रतिबिंबित करता है । यदि किसी धर्म के अधिकांश लोगों में दया, करुणा, संवेदना, ईमानदारी, कर्तव्यपालन, मानवीयता आदि सद्गुण हैं तो यह माना जायेगा कि वह धर्म बहुत श्रेष्ठ है, उस धर्म को मानने वाले लोग बहुत अच्छे होते हैं ।
धर्म के नाम पर लूट, शोषण और अत्याचार कर हम अपने ही धर्म के बारे में लोगों की गलत धारणा न बनने दे ।
हमारे पास एक ही जीवन है, श्रेष्ठ गुणों को, मानवीय मूल्यों कों अपनाकर जीवन को सार्थक करें, यही सच्ची धार्मिकता है ।
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