आज की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि व्यक्ति ने अपना सारा ध्यान शरीर को स्वस्थ रखने पर केन्द्रित कर लिया है और मन जो इन्द्रियों का राजा है उसे स्वस्थ रखने का कोई प्रयास नहीं करता है | मन के विकार से ही शरीर में विकार उत्पन्न होते हैं । यदि हम पूर्ण स्वस्थ रहना चाहते हैं तो हमें अपने मनोभावों कों सुधारना होगा ।
मन के दोष से ही शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं । जब व्यक्ति के शरीर में कोंई रोग हो जाता है तो वह लाखों रूपये दवाई, इंजेक्शन पर खर्च करता है, इससे कुछ समय के लिए बीमारी ठीक भी हो जाती है लेकिन फिर कुछ समय बाद एक न एक बीमारी होती रहती है ।
यदि हम प्रतिदिन के योगाभ्यास के साथ यह संकल्प लें कि हम अपनी बुराइयों को दूर करेंगे, मन को शुद्ध और पवित्र बनायेंगे । जितनी मात्रा में मन निर्मल होगा उतना ही आप स्वस्थ और भीड़ से अलग दिखाई देंगे ।
मन को स्वस्थ और निर्मल बनाने का प्रयास व्यक्ति कों स्वयं करना पड़ता है, श्रेष्ठ साहित्य से हमें दिशा मिलती है और निष्काम कर्म से मन के विकार दूर होते हैं ।
मन के दोष से ही शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं । जब व्यक्ति के शरीर में कोंई रोग हो जाता है तो वह लाखों रूपये दवाई, इंजेक्शन पर खर्च करता है, इससे कुछ समय के लिए बीमारी ठीक भी हो जाती है लेकिन फिर कुछ समय बाद एक न एक बीमारी होती रहती है ।
यदि हम प्रतिदिन के योगाभ्यास के साथ यह संकल्प लें कि हम अपनी बुराइयों को दूर करेंगे, मन को शुद्ध और पवित्र बनायेंगे । जितनी मात्रा में मन निर्मल होगा उतना ही आप स्वस्थ और भीड़ से अलग दिखाई देंगे ।
मन को स्वस्थ और निर्मल बनाने का प्रयास व्यक्ति कों स्वयं करना पड़ता है, श्रेष्ठ साहित्य से हमें दिशा मिलती है और निष्काम कर्म से मन के विकार दूर होते हैं ।
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