जब तक मनुष्य में स्वार्थ, ईर्ष्या, क्रोध, लोभ, लालच, अहंकार, भय जैसी दूषित प्रवृतियां हैं तब तक व्यक्तिगत जीवन में शान्ति और स्थायी विश्व-शान्ति की आशा नहीं की जा सकती ।
उपासना के नाम पर विभिन्न कर्मकांड करना ईश्वर की पूजा नहीं है । यदि आप चाहते हैं कि प्रकृति आप से प्रसन्न हों, दैवी कृपा के आनन्द का अनुभव हो तो अपने में मानवीय गुणों को विकसित करना होगा , ईश्वर का निवास तो हमारे ह्रदय में है, हमें अपनी दूषित प्रवृतियों को त्याग कर ह्रदय को पवित्र बनाना है ताकि ह्रदय में बैठे ईश्वर जाग्रत हो जायें ।
मन के निर्मल होने से, ह्रदय की पवित्रता से हमारी विवेक द्रष्टि जाग्रत हो जाती है और तब जीवन की विभिन्न समस्याओं में शांतिपूर्ण ढंग से उचित निर्णय लेने की प्रेरणा ह्रदय से, अपनी अंतरात्मा से मिलती । हम अपने जीवन में सच्चे अध्यात्म को अपनायें ।
उपासना के नाम पर विभिन्न कर्मकांड करना ईश्वर की पूजा नहीं है । यदि आप चाहते हैं कि प्रकृति आप से प्रसन्न हों, दैवी कृपा के आनन्द का अनुभव हो तो अपने में मानवीय गुणों को विकसित करना होगा , ईश्वर का निवास तो हमारे ह्रदय में है, हमें अपनी दूषित प्रवृतियों को त्याग कर ह्रदय को पवित्र बनाना है ताकि ह्रदय में बैठे ईश्वर जाग्रत हो जायें ।
मन के निर्मल होने से, ह्रदय की पवित्रता से हमारी विवेक द्रष्टि जाग्रत हो जाती है और तब जीवन की विभिन्न समस्याओं में शांतिपूर्ण ढंग से उचित निर्णय लेने की प्रेरणा ह्रदय से, अपनी अंतरात्मा से मिलती । हम अपने जीवन में सच्चे अध्यात्म को अपनायें ।
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