विचारों में परिवर्तन के लिए हमारे अन्दर समझ का, संवेदना का विकसित होना अनिवार्य हैं ।
आज हम देखते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य से भाग रहा है और उसे अपनी गलती का अहसास तक नही है । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी, इस कारण उसके परिवार, समाज और देश के प्रति अनेक कर्तव्य है ।
अब प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं देखना ही कि वह अपने कर्तव्यों का पालन कहाँ तक कर रहा है |
फिर कर्तव्य पालन में जहां चूक की, कर्तव्य से ज़ी चुराया, उसकी तुलना अपने जीवन के कष्ट, बीमारी, दुःख, अशांति से करे । यह तत्काल ही स्पष्ट हो जायेगा कि अपने कर्तव्य का पालन जितनी मात्रा में नहीं किया जायेगा, उतनी ही मात्रा में जीवन मे दुःख व अशांति है ।
आज समाज में हर क्षेत्र में जो भ्रष्टाचार, मिलावट, बेईमानी, अपराध, चोर-बाजारी आदि दुष्प्रवृत्तियां हैं--- इनका कारण ही है---- व्यक्ति का कर्तव्य के प्रति ईमानदार न होना ।
अत;जब व्यक्ति में यह समझ विकसित होगी कि अपनी गलतियों की वजह से ही वह स्वयं अशांत है और समाज मे भी अशांति फैला रहा है---- तब व्यक्ति अपने सुधार की दशा में एक कदम बढ़ायेगा तभी सम्पूर्ण समाज में सुधार संभव है ।
आज हम देखते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य से भाग रहा है और उसे अपनी गलती का अहसास तक नही है । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी, इस कारण उसके परिवार, समाज और देश के प्रति अनेक कर्तव्य है ।
अब प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं देखना ही कि वह अपने कर्तव्यों का पालन कहाँ तक कर रहा है |
फिर कर्तव्य पालन में जहां चूक की, कर्तव्य से ज़ी चुराया, उसकी तुलना अपने जीवन के कष्ट, बीमारी, दुःख, अशांति से करे । यह तत्काल ही स्पष्ट हो जायेगा कि अपने कर्तव्य का पालन जितनी मात्रा में नहीं किया जायेगा, उतनी ही मात्रा में जीवन मे दुःख व अशांति है ।
आज समाज में हर क्षेत्र में जो भ्रष्टाचार, मिलावट, बेईमानी, अपराध, चोर-बाजारी आदि दुष्प्रवृत्तियां हैं--- इनका कारण ही है---- व्यक्ति का कर्तव्य के प्रति ईमानदार न होना ।
अत;जब व्यक्ति में यह समझ विकसित होगी कि अपनी गलतियों की वजह से ही वह स्वयं अशांत है और समाज मे भी अशांति फैला रहा है---- तब व्यक्ति अपने सुधार की दशा में एक कदम बढ़ायेगा तभी सम्पूर्ण समाज में सुधार संभव है ।
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