यह दुर्बुद्धि है कि मनुष्य स्वयं अपना अहित कर रहा है----- समाज में अश्लीलता और महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ते जा रहे हैं , इससे नारी जाति तो कष्ट व उत्पीड़न सहन कर रही है , इस के प्रभाव से पुरुष वर्ग भी अछूता नहीं रहेगा । मन को कुमार्गगामी बनाने वाले सब साधन समाज में मौजूद हैं , ऐसे में कहीं चरित्र हनन की घटनाएँ होती हैं तो कहीं मन पर नियंत्रण न रख पाने के कारण व्यक्ति स्वयं पथभ्रष्ट हो जाता है । पुरुष के अहं को सबसे ज्यादा ठेस तब पहुँचती है जब वह अपने ही परिवार में मर्यादाहीन आचरण देखता है ।
श्रेष्ठ चरित्र से ही सुखी व शांतिपूर्ण परिवार व समाज का निर्माण हो सकता है ।
श्रेष्ठ चरित्र से ही सुखी व शांतिपूर्ण परिवार व समाज का निर्माण हो सकता है ।
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