लोगों को विभिन्न तर्कों से समझाया जा सकता है कि उनका हित किस में है , लेकिन किसी भी अच्छी आदत को अपनाने के लिए उन्हें विवश नहीं किया जा सकता है ।
जैसे व्यक्ति को मालूम है कि सिगरेट और तम्बाकू उसके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं फिर भी वह उन्हें छोड़ता नहीं है । इसे छोड़ने के सिर्फ दो ही तरीके हैं --- सिगरेट और तम्बाकू का व्यवसाय करने वालों की चेतना इतनी विकसित हो जाये कि वे इस व्यवसाय को ही छोड़ दें , बाजार में सिगरेट व तम्बाकू मिलना ही बंद हो जाये ।
दूसरा तरीका है कि इनका सेवन करने वालों को समझ आ जाये कि अपने अमूल्य शरीर को नष्ट करने से कोई फायदा नहीं , शरीर के स्वस्थ रहने पर ही संसार के सारे सुख प्राप्त हो सकते हैं ।
नशा कोई भी हो --- जब वह सिर पर सवार हो जाता है तो व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और इस एक बुराई से न केवल उसका पतन होता है अपितु सम्पूर्ण समाज पर उसका दुष्प्रभाव पड़ता है ---- अपनी गलत आदतों को संतुष्ट करने के लिए वह गलत तरीके से धन कमाता है , दूसरों का हक छीनता है , भ्रष्टाचार में संलग्न होता है , अनेक व्यक्तियों को ऐसे अनैतिक कार्यों में जोड़कर अपना क्षेत्र बढ़ाता है । दुष्प्रवृत्तियां इतनी बढ़ जाती हैं कि सत्प्रवृतियां उपेक्षित हो जाती हैं ।
जैसे नदियों पर बाँध बनाना पड़ता है उसी प्रकार मनुष्य के मन को गिराने वाले जो विभिन्न उपकरण संसार में हैं उन पर भी नियंत्रण जरुरी है अन्यथा जब बाढ़ आती है तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है ।
जैसे व्यक्ति को मालूम है कि सिगरेट और तम्बाकू उसके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं फिर भी वह उन्हें छोड़ता नहीं है । इसे छोड़ने के सिर्फ दो ही तरीके हैं --- सिगरेट और तम्बाकू का व्यवसाय करने वालों की चेतना इतनी विकसित हो जाये कि वे इस व्यवसाय को ही छोड़ दें , बाजार में सिगरेट व तम्बाकू मिलना ही बंद हो जाये ।
दूसरा तरीका है कि इनका सेवन करने वालों को समझ आ जाये कि अपने अमूल्य शरीर को नष्ट करने से कोई फायदा नहीं , शरीर के स्वस्थ रहने पर ही संसार के सारे सुख प्राप्त हो सकते हैं ।
नशा कोई भी हो --- जब वह सिर पर सवार हो जाता है तो व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और इस एक बुराई से न केवल उसका पतन होता है अपितु सम्पूर्ण समाज पर उसका दुष्प्रभाव पड़ता है ---- अपनी गलत आदतों को संतुष्ट करने के लिए वह गलत तरीके से धन कमाता है , दूसरों का हक छीनता है , भ्रष्टाचार में संलग्न होता है , अनेक व्यक्तियों को ऐसे अनैतिक कार्यों में जोड़कर अपना क्षेत्र बढ़ाता है । दुष्प्रवृत्तियां इतनी बढ़ जाती हैं कि सत्प्रवृतियां उपेक्षित हो जाती हैं ।
जैसे नदियों पर बाँध बनाना पड़ता है उसी प्रकार मनुष्य के मन को गिराने वाले जो विभिन्न उपकरण संसार में हैं उन पर भी नियंत्रण जरुरी है अन्यथा जब बाढ़ आती है तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है ।
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