अधिकांश मनुष्यों का यह स्वभाव होता है कि छोटी सी भी कोई परेशानी हुई, कोई नुकसान हुआ, उसकी वे सबसे चर्चा करेंगे, उसमे जो लाभ छिपा हुआ है उसे नहीं देखेंगे । इसका परिणाम होता है कि नकारात्मकता, अशांति बढ़ती जाती है ।
मान लीजिए आपको व्यवसाय में बहुत घाटा हो गया, अब व्यवसाय बड़ा था तो नुकसान भी बड़ा हुआ । अब यदि मन को शांत रखना है तो बार-बार इस नुकसान की गणना न करो । यह देखो और गणना करो कि कितना धन बच गया । मित्र, रिश्तेदार आदि सहानुभूति प्रकट करने आयें तो नुकसान की चर्चा न करें और न करने दें, जो धन-संपति आप के पास बची है उसका जश्न मनाएं ।
जब तक जीवन है , समस्याएं हैं, हमें उन समस्याओं से न भागना है, न घबराना है । उनके बीच रहकर स्वयं को शांत और संतुलित रखना है । अब यदि ऑफिस से घर लौट रहें हैं ट्रेन में, बस में बड़ी भीड है, बैठने को जगह नहीं मिली तो न लड़ना है किसी से, न परेशान होना । अरे ! ऑफिस में दिन भर बैठे-बैठे ही तो काम किया, अब थोड़ी देर खड़े हो गये तो क्या हुआ ? इस बहाने हाथ-पैर सीधे हो गये, शरीर की कसरत हो गई, खड़े हैं , किसी का धक्का न लगे तो मन ही मन ईश्वर की प्रार्थना भी कर ली ।
यदि हमारा सोचने का नजरिया सकारात्मक हो जाये तो मन भी शांत रहे और शरीर भी स्वस्थ ।
मान लीजिए आपको व्यवसाय में बहुत घाटा हो गया, अब व्यवसाय बड़ा था तो नुकसान भी बड़ा हुआ । अब यदि मन को शांत रखना है तो बार-बार इस नुकसान की गणना न करो । यह देखो और गणना करो कि कितना धन बच गया । मित्र, रिश्तेदार आदि सहानुभूति प्रकट करने आयें तो नुकसान की चर्चा न करें और न करने दें, जो धन-संपति आप के पास बची है उसका जश्न मनाएं ।
जब तक जीवन है , समस्याएं हैं, हमें उन समस्याओं से न भागना है, न घबराना है । उनके बीच रहकर स्वयं को शांत और संतुलित रखना है । अब यदि ऑफिस से घर लौट रहें हैं ट्रेन में, बस में बड़ी भीड है, बैठने को जगह नहीं मिली तो न लड़ना है किसी से, न परेशान होना । अरे ! ऑफिस में दिन भर बैठे-बैठे ही तो काम किया, अब थोड़ी देर खड़े हो गये तो क्या हुआ ? इस बहाने हाथ-पैर सीधे हो गये, शरीर की कसरत हो गई, खड़े हैं , किसी का धक्का न लगे तो मन ही मन ईश्वर की प्रार्थना भी कर ली ।
यदि हमारा सोचने का नजरिया सकारात्मक हो जाये तो मन भी शांत रहे और शरीर भी स्वस्थ ।
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