काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या-द्वेष ऐसी मानसिक दुर्भावनाएँ हैं कि ये जिस व्यक्ति पार हावी हो जाती हैं वह स्वयं तो इन भावनाओं के वशीभूत होकर परेशान होता है साथ ही जिनके प्रति ये दुर्भावनाएँ जन्म लेती हैं, तरह-तरह के कुचक्र रच कर, षडयंत्र कर वे उसे भी मानसिक रूप से पीड़ित करते हैं
आज समाज में ऐसे ही लोगों की भरमार है जो ईर्ष्या-द्वेष और लालच वश लोगों को मानसिक रूप से कष्ट देते हैं----------- यदि ऐसे कष्ट से आप पीड़ित और तनावग्रस्त हो गये तो आपके हिस्से में बीमारी और विभिन्न समस्याएँ आएँगी ।
प्रश्न ये है कि ऐसे ईर्ष्यालू लोगों द्वारा दिए जा रहे मानसिक कष्ट से हम कैसे अप्रभावित रहें, शांति से रहें-----
ऐसे मानसिक कष्ट का इलाज आसन, प्राणायाम, योग, दवाई में नहीं है, इसका इलाज तो हमारे ही विचारों में है--- 1.ऐसे लोगों से कभी कोई विवाद न करें, उलझे नहीं, ईर्ष्या-द्वेष के कारण ऐसा व्यक्ति किसी भी हद तक नीचे गिर सकता है ।
2.जिस भी क्षेत्र, व्यवसाय में आप हैं, वह कार्य पूरी निष्ठा व ईमानदारी से करें
3.कभी किसी भी प्रकार के लालच में न आएं, स्वयं को सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रखें
4.यह बात अपने मन में अच्छी तरह से बैठा लें कि ऐसे व्यक्ति दया के पात्र हैं, वे अपने ही हाथ से अपना दुर्भाग्य लिख रहें हैं
5.सबसे महत्वपूर्ण है कि आप ईश्वर विश्वसी बने, उस अज्ञात शक्ति पर अटूट विश्वास से ही आत्मविश्वास बढ़ता है । सत्कर्म कर ईश्वर को प्रसन्न करें । ईश्वर विश्वास ही कवच बनकर ऐसे कुचक्रों के बीच आपको शांत व स्वस्थ रखेगा ।
आज समाज में ऐसे ही लोगों की भरमार है जो ईर्ष्या-द्वेष और लालच वश लोगों को मानसिक रूप से कष्ट देते हैं----------- यदि ऐसे कष्ट से आप पीड़ित और तनावग्रस्त हो गये तो आपके हिस्से में बीमारी और विभिन्न समस्याएँ आएँगी ।
प्रश्न ये है कि ऐसे ईर्ष्यालू लोगों द्वारा दिए जा रहे मानसिक कष्ट से हम कैसे अप्रभावित रहें, शांति से रहें-----
ऐसे मानसिक कष्ट का इलाज आसन, प्राणायाम, योग, दवाई में नहीं है, इसका इलाज तो हमारे ही विचारों में है--- 1.ऐसे लोगों से कभी कोई विवाद न करें, उलझे नहीं, ईर्ष्या-द्वेष के कारण ऐसा व्यक्ति किसी भी हद तक नीचे गिर सकता है ।
2.जिस भी क्षेत्र, व्यवसाय में आप हैं, वह कार्य पूरी निष्ठा व ईमानदारी से करें
3.कभी किसी भी प्रकार के लालच में न आएं, स्वयं को सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रखें
4.यह बात अपने मन में अच्छी तरह से बैठा लें कि ऐसे व्यक्ति दया के पात्र हैं, वे अपने ही हाथ से अपना दुर्भाग्य लिख रहें हैं
5.सबसे महत्वपूर्ण है कि आप ईश्वर विश्वसी बने, उस अज्ञात शक्ति पर अटूट विश्वास से ही आत्मविश्वास बढ़ता है । सत्कर्म कर ईश्वर को प्रसन्न करें । ईश्वर विश्वास ही कवच बनकर ऐसे कुचक्रों के बीच आपको शांत व स्वस्थ रखेगा ।
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