जिस दिन हम प्रचलित असंयम को सभ्यता समझने की मान्यता बदल देंगे, अपने सोचने का ढंग सुधार लेंगे, उसी दिन मानव जीवन पर लगा अस्वस्थता का ग्रहण उतर जायेगा ।
प्रकृति के पाँच तत्वों पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश से मनुष्य का शरीर बना है और इसी प्रकृति के सूक्ष्म तत्वों से मनुष्य का मन बना है । प्रकृति के विपरीत जीवन जीकर न तो इनसान स्वस्थ हो सकता है और न ही सुखी । प्रकृति का नैसर्गिक साहचर्य ही उसे स्वास्थ्य, सुख एवं समृद्धि के अनुदान दे सकता है ।
प्रकृति के पाँच तत्वों पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश से मनुष्य का शरीर बना है और इसी प्रकृति के सूक्ष्म तत्वों से मनुष्य का मन बना है । प्रकृति के विपरीत जीवन जीकर न तो इनसान स्वस्थ हो सकता है और न ही सुखी । प्रकृति का नैसर्गिक साहचर्य ही उसे स्वास्थ्य, सुख एवं समृद्धि के अनुदान दे सकता है ।
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