पूर्ण स्वस्थ होने का यह अर्थ नहीं कि हमें कोई बीमारी ही न हो । इसका अर्थ है कि हमारा मन मजबूत हो, यदि कोई बीमारी है तो उससे हमारी दिनचर्या पर, मानसिक संतुलन पर कोई असर न पड़े । ऐसा तभी संभव है जब हम में आत्मविश्वास हो ।
डॉक्टर तो बीमारी के निश्चित कारण व इलाज बताते हैं लेकिन यह सत्य है कि यदि हम नेक रास्ते पर चलें, सच्चे मन से ईश्वर की प्रार्थना करें तो रोग हमें छू कर निकल जाते हैं उनका हमारे शरीर पर, जीवन पर कोई असर नहीं होता है ।
आज के वैज्ञानिक युग में पुण्य कार्य भी बाजार की वस्तु हो गये हैं---- किसी की नौकरी लगवाने में मदद की तो उससे मोटी रकम वसूल की, किसी भी काम में थोड़ी भी मदद की तो तो उसका पैसा वसूला, किसी को ठगा बदले में थोड़ा भगवान को भोग लगा दिया, किन्ही संस्थाओं में दान किया तो टैक्स में छूट ली----- इस तरह के व्यवहार से पुण्य का संचय नहीं हो पाता, दूसरी ओर मानव स्वभाव है, जाने-अनजाने गलतियाँ हो जाती हैं तो पाप बढ़ता जाता है ।
जब व्यक्ति की दिशा गलत होती है तब उसका आत्मविश्वास डगमगाने लगता है और छोटी सी बीमारी भी विकराल रूप ले लेती है ।
लालच का कोई अंत नहीं, पुण्य कार्यों का सौदा न करें, हमारे संचित पुण्य ही कठिन वक्त में हमारी रक्षा करते हैं ।
डॉक्टर तो बीमारी के निश्चित कारण व इलाज बताते हैं लेकिन यह सत्य है कि यदि हम नेक रास्ते पर चलें, सच्चे मन से ईश्वर की प्रार्थना करें तो रोग हमें छू कर निकल जाते हैं उनका हमारे शरीर पर, जीवन पर कोई असर नहीं होता है ।
आज के वैज्ञानिक युग में पुण्य कार्य भी बाजार की वस्तु हो गये हैं---- किसी की नौकरी लगवाने में मदद की तो उससे मोटी रकम वसूल की, किसी भी काम में थोड़ी भी मदद की तो तो उसका पैसा वसूला, किसी को ठगा बदले में थोड़ा भगवान को भोग लगा दिया, किन्ही संस्थाओं में दान किया तो टैक्स में छूट ली----- इस तरह के व्यवहार से पुण्य का संचय नहीं हो पाता, दूसरी ओर मानव स्वभाव है, जाने-अनजाने गलतियाँ हो जाती हैं तो पाप बढ़ता जाता है ।
जब व्यक्ति की दिशा गलत होती है तब उसका आत्मविश्वास डगमगाने लगता है और छोटी सी बीमारी भी विकराल रूप ले लेती है ।
लालच का कोई अंत नहीं, पुण्य कार्यों का सौदा न करें, हमारे संचित पुण्य ही कठिन वक्त में हमारी रक्षा करते हैं ।
No comments:
Post a Comment