आत्मविश्वास की कमी से पारिवारिक जीवन और सामाजिक जीवन में अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं । प्रश्न ये है कि आज के समय जब चारों ओर लूट, ठगी, अपराध, धोखा , रिश्वतखोरी और तीव्र प्रतियोगिता है तो आत्मविश्वास कैसे बना रहे ?
जो अपराधी होता है वह आत्मविश्वासी होने का नाटक करता है, वास्तव में उसमे आत्मविश्वास नहीं होता, वह किन्ही ' विशेष व्यक्ति ' के संरक्षण में ही अपराध को अंजाम देता है, उसे यह विश्वास होता है कि यदि किसी मुसीबत में फँसे तो वह व्यक्ति विशेष उसे अपने प्रयास से बचा देगा ।
हमें आत्मविश्वासी होने का नाटक नहीं करना, बल्कि सही अर्थों में आत्मविश्वासी बनना है और सुखी व संपूर्ण जीवन जीना है । हमारे भीतर आत्मविश्वास हो इसके लिये हमें भी संरक्षण की आवश्यकता है ।
इस कलियुग में जब धन ही सब कुछ है, रिश्तों की कोई अहमियत नहीं रही तो आत्मविश्वास की चाहत रखने वाले को संरक्षण कौन दे ? मुसीबत पडने पर रक्षा कौन करे ?
इसलिए आत्मविश्वासी होने के लिए हमें ईश्वरविश्वासी होना पड़ेगा । ईश्वरविश्वास का अर्थ है--- इस सत्य को स्वीकार करना कि ईश्वर हर पल हमारे साथ है, धूप, हवा, जल, मिट्टी, आकाश आदि विभिन्न रूपों में वह हमें देख रहा है । अब यदि हम यह चाहते हैं कि मुसीबत में, कठिन समय में ईश्वर हमारी रक्षा करे तो हमें उन्हें प्रसन्न करना होगा । ईश्वर को हम पूजा-पाठ आदि कर्मकांड से प्रसन्न नहीं कर सकते, ढेरों फूलमाला से स्वागत करना, बड़े-बड़े गिफ्ट देना, समय-समय पर मिठाई देना ये सब तो नेताओं को, अधिकारियों को खुश करने के तरीके हैं, ईश्वर को फल मिठाई खाने का कोई लालच नहीं है ।
हमें ईश्वर को, प्रकृति माँ को प्रसन्न करना है तो सच्चाई के रास्ते पर चलना होगा, अपनी कमियों को दूर करने का निरंतर प्रयास करना होगा और अपनी सुविधानुसार कोई भी सेवा कार्य जो निस्स्वार्थ भाव से हो, अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करना होगा ।
जो अपराधी होता है वह आत्मविश्वासी होने का नाटक करता है, वास्तव में उसमे आत्मविश्वास नहीं होता, वह किन्ही ' विशेष व्यक्ति ' के संरक्षण में ही अपराध को अंजाम देता है, उसे यह विश्वास होता है कि यदि किसी मुसीबत में फँसे तो वह व्यक्ति विशेष उसे अपने प्रयास से बचा देगा ।
हमें आत्मविश्वासी होने का नाटक नहीं करना, बल्कि सही अर्थों में आत्मविश्वासी बनना है और सुखी व संपूर्ण जीवन जीना है । हमारे भीतर आत्मविश्वास हो इसके लिये हमें भी संरक्षण की आवश्यकता है ।
इस कलियुग में जब धन ही सब कुछ है, रिश्तों की कोई अहमियत नहीं रही तो आत्मविश्वास की चाहत रखने वाले को संरक्षण कौन दे ? मुसीबत पडने पर रक्षा कौन करे ?
इसलिए आत्मविश्वासी होने के लिए हमें ईश्वरविश्वासी होना पड़ेगा । ईश्वरविश्वास का अर्थ है--- इस सत्य को स्वीकार करना कि ईश्वर हर पल हमारे साथ है, धूप, हवा, जल, मिट्टी, आकाश आदि विभिन्न रूपों में वह हमें देख रहा है । अब यदि हम यह चाहते हैं कि मुसीबत में, कठिन समय में ईश्वर हमारी रक्षा करे तो हमें उन्हें प्रसन्न करना होगा । ईश्वर को हम पूजा-पाठ आदि कर्मकांड से प्रसन्न नहीं कर सकते, ढेरों फूलमाला से स्वागत करना, बड़े-बड़े गिफ्ट देना, समय-समय पर मिठाई देना ये सब तो नेताओं को, अधिकारियों को खुश करने के तरीके हैं, ईश्वर को फल मिठाई खाने का कोई लालच नहीं है ।
हमें ईश्वर को, प्रकृति माँ को प्रसन्न करना है तो सच्चाई के रास्ते पर चलना होगा, अपनी कमियों को दूर करने का निरंतर प्रयास करना होगा और अपनी सुविधानुसार कोई भी सेवा कार्य जो निस्स्वार्थ भाव से हो, अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करना होगा ।
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