हम हर कार्य को बोझ समझ कर करते हैं, ' घर में बहुत काम है, आफिस में बहुत काम है, परेशान हो गये ! ' धन कमाने, भोजन-पानी की व्यवस्था के लिए, सुख-सुविधाओं भरा जीवन जीने के लिए व्यक्ति को कार्य तो करना ही पड़ता है, लेकिन इस तरह के वार्तालाप से कार्य बोझ बन जाता है, तनाव बढ़ता है, सिर दर्द और बेहद थकान की शिकायत हो जाती है ।
जब कार्य करना ही है तो परेशान क्या होना ? जो भी कार्य करें उसे खुशी से करें, अपने कार्यों को किसी श्रेष्ठ भावना से जोड़ें जैसे---- आफिस के काम से परेशान होने के बजाय यह सोचें कि---- ' दिन भर की व्यस्तता में लोक कल्याण का कोई काम हो नहीं पाता, अब तो यही लोक कल्याण का काम है, इसे ही मन से, सच्चाई से करेंगे ' ऐसी भावना रखते हुए समर्पण भाव से काम करने से वह कार्य पुण्य बन जायेगा और उससे हमें नवीन ऊर्जा प्राप्त होगी, दिन भर काम के बाद भी आप स्वयं को तरोताजा महसूस करेंगे ।
पूजा-पाठ, माला जपने में मन एकाग्र नहीं हो पाता, मन का काम ही है इधर-उधर भागना । इसलिए हम अपने दैनिक जीवन के प्रत्येक कार्य को ही ईश्वर की व्यवस्था मानकर श्रेष्ठता से करें
जब कार्य करना ही है तो परेशान क्या होना ? जो भी कार्य करें उसे खुशी से करें, अपने कार्यों को किसी श्रेष्ठ भावना से जोड़ें जैसे---- आफिस के काम से परेशान होने के बजाय यह सोचें कि---- ' दिन भर की व्यस्तता में लोक कल्याण का कोई काम हो नहीं पाता, अब तो यही लोक कल्याण का काम है, इसे ही मन से, सच्चाई से करेंगे ' ऐसी भावना रखते हुए समर्पण भाव से काम करने से वह कार्य पुण्य बन जायेगा और उससे हमें नवीन ऊर्जा प्राप्त होगी, दिन भर काम के बाद भी आप स्वयं को तरोताजा महसूस करेंगे ।
पूजा-पाठ, माला जपने में मन एकाग्र नहीं हो पाता, मन का काम ही है इधर-उधर भागना । इसलिए हम अपने दैनिक जीवन के प्रत्येक कार्य को ही ईश्वर की व्यवस्था मानकर श्रेष्ठता से करें
No comments:
Post a Comment