शरीर के स्वस्थ होने के साथ ही जरुरी है कि हमारा मन भी स्वस्थ और मजबूत हो । हमारा मन हमेशा असीमित इच्छाओं, वासना और लालच में भटकता रहता है और इसी भटकन के कारण बीमारी, तनाव, लड़ाई-झगड़ा, पागलपन, आत्महत्या आदि विभिन्न समस्या उत्पन्न होती हैं । इसका अर्थ है कि मन के विकारों के कारण ही अनेक समस्याएँ हैं ।
कहते हैं ' निष्काम कर्म से मन निर्मल होता है, मन के विकार दूर होते हैं । '
आज के समय में कितनी अधिक धार्मिक, समाजसेवी और शैक्षणिक संस्थाएं हैं जहाँ लोग बहुत अधिक दान करते हैं लेकिन फिर भी अस्वस्थ हैं, विभिन्न समस्याओं से परेशान हैं कहते हैं कितना भी दान-पुण्य करो भगवान सुनता ही नहीं । ऐसा क्योँ ?
इसका कारण है कि वे दान-पुण्य भगवान तक पहुंचे ही नहीं । यदि हम अपने भोजन में से केवल एक कौर, एक छोटा सा टुकड़ा भी पक्षियों को देंगे वह तो भगवान तक पहुँच जायेगा, लेकिन इतने बड़े-बड़े दान क्योँ नहीं पहुंचे ?
धार्मिक संस्थाओं को जो दान किया वह उनके खजाने में चला गया, अब पता नहीं किस युग में उसका इस्तेमाल होगा तब उसका कुछ पुण्य मिलेगा या फिर उन धार्मिक संस्थाओं के विशाल भवन बनाने, उत्सव मनाने, जुलूस निकालने में खर्च हो गया । अन्य संस्थाओं को दिया गया धन भ्रष्टाचार की बलि चढ़ गया ।
यदि मन को स्वस्थ और निर्मल बनाना है तो अन्न, जल आदि ऐसा दान करे जिससे किसी की आत्मा को संतोष मिले, किसी के कष्ट दूर हों इसी के प्रतिफल में हमारे जीवन में सुख- शांति आएगी । प्रारब्धवश कोई बीमारी होगी भी तो उसका कष्ट नहीं होगा, जीवन यात्रा सहज होगी ।
कहते हैं ' निष्काम कर्म से मन निर्मल होता है, मन के विकार दूर होते हैं । '
आज के समय में कितनी अधिक धार्मिक, समाजसेवी और शैक्षणिक संस्थाएं हैं जहाँ लोग बहुत अधिक दान करते हैं लेकिन फिर भी अस्वस्थ हैं, विभिन्न समस्याओं से परेशान हैं कहते हैं कितना भी दान-पुण्य करो भगवान सुनता ही नहीं । ऐसा क्योँ ?
इसका कारण है कि वे दान-पुण्य भगवान तक पहुंचे ही नहीं । यदि हम अपने भोजन में से केवल एक कौर, एक छोटा सा टुकड़ा भी पक्षियों को देंगे वह तो भगवान तक पहुँच जायेगा, लेकिन इतने बड़े-बड़े दान क्योँ नहीं पहुंचे ?
धार्मिक संस्थाओं को जो दान किया वह उनके खजाने में चला गया, अब पता नहीं किस युग में उसका इस्तेमाल होगा तब उसका कुछ पुण्य मिलेगा या फिर उन धार्मिक संस्थाओं के विशाल भवन बनाने, उत्सव मनाने, जुलूस निकालने में खर्च हो गया । अन्य संस्थाओं को दिया गया धन भ्रष्टाचार की बलि चढ़ गया ।
यदि मन को स्वस्थ और निर्मल बनाना है तो अन्न, जल आदि ऐसा दान करे जिससे किसी की आत्मा को संतोष मिले, किसी के कष्ट दूर हों इसी के प्रतिफल में हमारे जीवन में सुख- शांति आएगी । प्रारब्धवश कोई बीमारी होगी भी तो उसका कष्ट नहीं होगा, जीवन यात्रा सहज होगी ।
Wow...good going mummy....all posts r worth reading. .
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