मनुष्य की अशांति का कारण असीमित इच्छाएं हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि वह इन इच्छाओं को कम समय में ही पूरा करना चाहता है । इस वजह से वह समस्याओं के चक्रव्यूह में उलझ जाता है ---- एक ओर इच्छाओं के पूरा न होने से असंतोष होता है, मन के असंतुष्ट होने से ही क्रोध उत्पन्न होता है और इससे पारिवारिक जीवन में अशांति, तनाव उत्पन्न होता है ।
दूसरी ओर इन असीमित इच्छाओं को पूरा करने की धुन में व्यक्ति दिन-रात इसी चिंता में लग रहता है कि कैसे अधिक-से-अधिक धन कमाएं और इन इच्छाओं को पूरा करें । इससे धन कमाना जीवन का सबसे प्रमुख कार्य हो जाता है और अपना स्वास्थ्य, परिवार, बच्चे सब उपेक्षित हो जाते हैं तथा इच्छाएं भी समाप्त नहीं होतीं ।
यह मनुष्य का भ्रम है कि सारी इच्छाएं धन से पूरी होती हैं । जब कोई बड़ी बीमारी किसी को हो जाती है तो लाखों रूपये खर्च करने के बाद भी ठीक नहीं होती है ।
यदि मनुष्य थोड़ा धैर्य रखे, इच्छाओं की पूर्ति के लिए उतावला न हो और अपने दैनिक जीवन में धन कमाने के साथ कोई परोपकार का कार्य भी करता रहे तो मन को संतोष प्राप्त होता है, परोपकार से जो दुआएं मिलती हैं उनसे व्यक्ति के पास बीमारियाँ नहीं आतीं, यदि कभी कोई तकलीफ हुई भी तो साधारण इलाज से ठीक हो जाती है साथ ही परोपकार के कार्य में कुछ समय व्यस्त रहने से व्यर्थ की इच्छाओं को उपजने का मौका नहीं मिलता ।
भौतिक इच्छाएं तभी नियंत्रित होंगी जब भावनात्मक तृप्ति मिलेगी और यह सेवा, परोपकार के कार्य करने से ही मिलेगी ।
दूसरी ओर इन असीमित इच्छाओं को पूरा करने की धुन में व्यक्ति दिन-रात इसी चिंता में लग रहता है कि कैसे अधिक-से-अधिक धन कमाएं और इन इच्छाओं को पूरा करें । इससे धन कमाना जीवन का सबसे प्रमुख कार्य हो जाता है और अपना स्वास्थ्य, परिवार, बच्चे सब उपेक्षित हो जाते हैं तथा इच्छाएं भी समाप्त नहीं होतीं ।
यह मनुष्य का भ्रम है कि सारी इच्छाएं धन से पूरी होती हैं । जब कोई बड़ी बीमारी किसी को हो जाती है तो लाखों रूपये खर्च करने के बाद भी ठीक नहीं होती है ।
यदि मनुष्य थोड़ा धैर्य रखे, इच्छाओं की पूर्ति के लिए उतावला न हो और अपने दैनिक जीवन में धन कमाने के साथ कोई परोपकार का कार्य भी करता रहे तो मन को संतोष प्राप्त होता है, परोपकार से जो दुआएं मिलती हैं उनसे व्यक्ति के पास बीमारियाँ नहीं आतीं, यदि कभी कोई तकलीफ हुई भी तो साधारण इलाज से ठीक हो जाती है साथ ही परोपकार के कार्य में कुछ समय व्यस्त रहने से व्यर्थ की इच्छाओं को उपजने का मौका नहीं मिलता ।
भौतिक इच्छाएं तभी नियंत्रित होंगी जब भावनात्मक तृप्ति मिलेगी और यह सेवा, परोपकार के कार्य करने से ही मिलेगी ।
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