हमारे जीवन में परिवार के अन्य सदस्यों---- बच्चों की समस्याएं भी हमें विचलित कर देती हें फिर हम बच्चों को उपदेश देने लगते हें कि वे क्या करें और क्या न करें ।
आज युवा वर्ग इतने अक्रोश में है, अपराध की घटनाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रहीं इसका कारण यही है कि आज माता-पिता के पास इतना समय नही है कि वे अपने बच्चों को सही दिशा दे सकें । माता-पिता धन कमाने, सुख-सुविधाएँ जोड़ने, पार्टी और मित्रों मे ज्यादा वयस्त रहते हैं, ऐसे मे युवा वर्ग को दिशा कौन दे ? धन प्राथमिक है, अच्छे संस्कार देने के लिये वक्त नहीं है ।
अच्छे संस्कार देने के लिए स्वयं अच्छा बनना होगा ।
यदि आप शांति चाहते हैं तो नेक रास्ते पर चलने की शुरुआत करनी ही होगी । जो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं वे न तो स्वयं शांति से रह सकेंगे और उनमे इतनी आत्मशक्ति भी नहीं कि वे अपने ही परिवार को सही दिशा दे सकें, समाज और राष्ट्र तो बहुत दूर की बात है ।
हम मनुष्य हैं, गलतियाँ हम सब से होती हैं । यदि यह एहसास हो जाये कि मन में जो अशांति है उसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार है, जीवन में जो गलतियाँ की हैं उसी का परिणाम सामने है तो रोने या पछतावा करने में समय न गंवायें । ईश्वर के सामने संकल्प लें कि अब हम नेक रास्ते पर चलेंगे और इन संकल्प को मजबूती देने के लिए निष्काम कर्म की, सेवा-परोपकार के कार्यों की शुरुआत करें । दुआओं में वो शक्ति है जो जाने-अनजाने में हमसे हुए पापों को काट दे, किसी की दुआ से जीवन में सफलता, खुशी व शांति मिलती है ।
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