आज के इस वैज्ञानिक युग में मनुष्य को न जाने क्या हो गया है, सबको नकारात्मक बातें करने में ज्यादा आनन्द आता है, जब भी मित्र-रिश्तेदार आपस में इकट्ठे हुए तो बीमारी की, पारिवारिक झगड़े की, ऑफिस के तनाव की चर्चा करेंगे, समाचार-पत्रों में भी चोरी, हत्या, बड़े-बड़े अपराध के समाचार मोटे-मोटे अक्षरों में छपेंगे और जीवन-दर्शन, प्रेरक-प्रसंग बहुत छोटे-छोटे अक्षरों में छपेंगे ।
नकारात्मकता को ज्यादा महत्व देने से देश-दुनिया में चारों ओर नकारात्मकता बढ़ गई है । एक-से-एक अमीर सुविधासंपन्न लोग हैं लेकिन खुशी नहीं है, हँसने के क्लब में जाकर खुश होने का नाटक करना पड़ता है या शराब पीकर स्वयं को भुलाने का प्रयत्न !
इसलिए सर्वप्रथम आपको निश्चय करना होगा कि क्या आप वास्तव में खुश रहना चाहते हैं ?
यदि हाँ ! तो ------ यह मान कर चलिए कि जीवन में सुख-दुःख आते-जाते रहेंगे, हमें दुःखों को, कष्टों को चुपचाप सहना है, उनकी चर्चा कर उन्हें महत्व नहीं देना है ।
हमारा प्रयास यह हो कि कष्ट, दुःख कम आयें और आयें तो उनका प्रहार हम पर कम हों, हम में इतनी शक्ति हो कि हम उन कष्टों में भी खुश और सामान्य रह लें ।
इसके लिए हमें प्रकृति को, परमपिता परमेश्वर को खुश करना होगा ।
जैसे अधिकांश लोग अपने अधिकारी को खुश करने के लिए उसकी चापलूसी करते हैं, जिससे उनकी तरक्की हो जाये, उन्हें सुविधाएँ मिल जायें । अब यदि प्रकृति से सुविधा चाहिए कि कष्ट कम हों, हम कष्ट में भी शांत मन:स्थिति में रहें तो इसके लिए प्रकृति को खुश करने का तरीका है----- निष्काम कर्म, सेवा, परोपकार का कोई कार्य करना ।
जब हमारे जीवन में कष्ट आते हैं और हम उन्हे दूर करने के लिए प्रार्थना करते हैं तो प्रकृति देखती हैं कि क्या हमारे खाते में कोई सत्कर्मों की पूंजी है ? यदि हमारे पास सत्कर्म की पूंजी है तो प्रकृति माँ की कृपा से हम में सद्बुद्धि आती है, हम सकारात्मक तरीके से, कष्टों को चुनौती समझ कर उनका सामना करते है । फिर हमारे नियमित सत्कर्म से ईश्वर और प्रसन्न होते हैं , फिर जाते-जाते ये कष्ट हमें कोई उपलब्धि, कोई सुख देकर ही जाते है ।
इसलिए सत्कर्मों की पूंजी का भंडार भरते रहें, यदि सत्कर्मों के साथ आप गायत्री मंत्र का जप भी करेंगे तो आप देखेंगे कि आप में आत्मविश्वास पैदा होगा, मन शांत रहेगा और परेशानियों के बीच भी आप चैन से गहरी नींद सोयेंगे और स्वस्थ रहेंगे ।
नकारात्मकता को ज्यादा महत्व देने से देश-दुनिया में चारों ओर नकारात्मकता बढ़ गई है । एक-से-एक अमीर सुविधासंपन्न लोग हैं लेकिन खुशी नहीं है, हँसने के क्लब में जाकर खुश होने का नाटक करना पड़ता है या शराब पीकर स्वयं को भुलाने का प्रयत्न !
इसलिए सर्वप्रथम आपको निश्चय करना होगा कि क्या आप वास्तव में खुश रहना चाहते हैं ?
यदि हाँ ! तो ------ यह मान कर चलिए कि जीवन में सुख-दुःख आते-जाते रहेंगे, हमें दुःखों को, कष्टों को चुपचाप सहना है, उनकी चर्चा कर उन्हें महत्व नहीं देना है ।
हमारा प्रयास यह हो कि कष्ट, दुःख कम आयें और आयें तो उनका प्रहार हम पर कम हों, हम में इतनी शक्ति हो कि हम उन कष्टों में भी खुश और सामान्य रह लें ।
इसके लिए हमें प्रकृति को, परमपिता परमेश्वर को खुश करना होगा ।
जैसे अधिकांश लोग अपने अधिकारी को खुश करने के लिए उसकी चापलूसी करते हैं, जिससे उनकी तरक्की हो जाये, उन्हें सुविधाएँ मिल जायें । अब यदि प्रकृति से सुविधा चाहिए कि कष्ट कम हों, हम कष्ट में भी शांत मन:स्थिति में रहें तो इसके लिए प्रकृति को खुश करने का तरीका है----- निष्काम कर्म, सेवा, परोपकार का कोई कार्य करना ।
जब हमारे जीवन में कष्ट आते हैं और हम उन्हे दूर करने के लिए प्रार्थना करते हैं तो प्रकृति देखती हैं कि क्या हमारे खाते में कोई सत्कर्मों की पूंजी है ? यदि हमारे पास सत्कर्म की पूंजी है तो प्रकृति माँ की कृपा से हम में सद्बुद्धि आती है, हम सकारात्मक तरीके से, कष्टों को चुनौती समझ कर उनका सामना करते है । फिर हमारे नियमित सत्कर्म से ईश्वर और प्रसन्न होते हैं , फिर जाते-जाते ये कष्ट हमें कोई उपलब्धि, कोई सुख देकर ही जाते है ।
इसलिए सत्कर्मों की पूंजी का भंडार भरते रहें, यदि सत्कर्मों के साथ आप गायत्री मंत्र का जप भी करेंगे तो आप देखेंगे कि आप में आत्मविश्वास पैदा होगा, मन शांत रहेगा और परेशानियों के बीच भी आप चैन से गहरी नींद सोयेंगे और स्वस्थ रहेंगे ।
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