धन , प्रभुत्व और प्रतिभा का सदुपयोग कर व्यक्ति ' देवता ' समान पूजा जा सकता है, वह सिर उठाकर, निडर होकर शान्ति से जीवन ज़ी सकता है लेकिन उसी का दुरूपयोग कर व्यक्ति ' राक्षस ' , और नर-पशु बन सकता है | ऐसा बनने पर शान्ति संभव नहीं है, अब वह सुरक्षित गाड़ियों में, गार्ड की सुरक्षा में भी भयभीत रहेगा ।
व्यक्ति के जीवन की दिशा कैसी हो , यह उसके विवेक पर निर्भर करता है । आज सर्वत्र दुर्बुद्धि का साम्राज्य है , व्यक्ति अपने पद, योग्यता और धन का दुरूपयोग कर रहा है इसीलिए सब तरफ अशान्ति, अपराध, भ्रष्टाचार जैसी नकारात्मक घटनाएं ही सुनने और पढ़ने में आती है । देश-दुनिया में अनेक अच्छे लोग भी हैं जो इन ईश्वरीय देन का सदुपयोग कर रहें हैं । लेकिन दुष्टता इतनी संगठित है कि वह अच्छाई को सामने आने नहीं देती ।
इस समस्या का हल क्या हो ? समाज में सकारात्मकता कैसे बढ़े ? कैसे लोगों में विवेक जाग्रत हो कि वे अपने धन, पद और प्रतिभा का उपयोग स्वयं के जीवन को श्रेष्ठ बनाने के साथ जन-कल्याण
के लिए करें ?
ईश्वर हों या अवतार वे अपने चरित्र से, अपने व्यवहार से समाज को शिक्षण देते है-----
भगवान शिव ने हलाहल विष को अपने कंठ में धारण किया, न उगला, न पिया ।
शिक्षण यही है कि नकारात्मकता को, विष जैसी जहरीली बातों को न तो हम अपनाएं और न ही उनकी बार-बार चर्चा करें । अपने परिवार में, मित्रों में, कार्यालय में फुर्सत के क्षण में हमेशा सकारात्मक चर्चा करें, समाज में जो लोग श्रेष्ठ कार्य कर रहें हैं उनकी चर्चा करें । इसी तरह समाज में सकारात्मकता बढ़ेगी ।
व्यक्ति के जीवन की दिशा कैसी हो , यह उसके विवेक पर निर्भर करता है । आज सर्वत्र दुर्बुद्धि का साम्राज्य है , व्यक्ति अपने पद, योग्यता और धन का दुरूपयोग कर रहा है इसीलिए सब तरफ अशान्ति, अपराध, भ्रष्टाचार जैसी नकारात्मक घटनाएं ही सुनने और पढ़ने में आती है । देश-दुनिया में अनेक अच्छे लोग भी हैं जो इन ईश्वरीय देन का सदुपयोग कर रहें हैं । लेकिन दुष्टता इतनी संगठित है कि वह अच्छाई को सामने आने नहीं देती ।
इस समस्या का हल क्या हो ? समाज में सकारात्मकता कैसे बढ़े ? कैसे लोगों में विवेक जाग्रत हो कि वे अपने धन, पद और प्रतिभा का उपयोग स्वयं के जीवन को श्रेष्ठ बनाने के साथ जन-कल्याण
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ईश्वर हों या अवतार वे अपने चरित्र से, अपने व्यवहार से समाज को शिक्षण देते है-----
भगवान शिव ने हलाहल विष को अपने कंठ में धारण किया, न उगला, न पिया ।
शिक्षण यही है कि नकारात्मकता को, विष जैसी जहरीली बातों को न तो हम अपनाएं और न ही उनकी बार-बार चर्चा करें । अपने परिवार में, मित्रों में, कार्यालय में फुर्सत के क्षण में हमेशा सकारात्मक चर्चा करें, समाज में जो लोग श्रेष्ठ कार्य कर रहें हैं उनकी चर्चा करें । इसी तरह समाज में सकारात्मकता बढ़ेगी ।
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