भौतिकता के क्षेत्र में हम कितना ही आगे क्यों न बढ़ जायें जब तक जीवन में सच्चे अध्यात्म का प्रवेश नहीं होगा शान्ति संभव नहीं है । आज के समय में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को अध्यात्मिक होने का दावा करता है------- निश्चित समय पर अपने धर्म के अनुसार कर्मकांड कर लिए, किन्ही बाबा-बैरागी के शिष्य बन गये , उन्हें दान-दक्षिणा दे दी, अपने-अपने धर्म के अनुसार कुछ समय के लिए भोजन-पानी छोड़ दिया------- यह अध्यात्म नहीं है ।
संसार में अनेक धर्म है और हम सबके महान धर्म गुरुओं ने नैतिकता के अनेक सिद्धांत बतायें है, जब तक़ हम उनके द्वारा बताये गये श्रेष्ठ सिद्धांतों को------ दया, करुणा, संवेदना, सहयोग, सहानुभूति, प्रेम, कर्तव्यपालन, ईमानदारी, सत्य बोलना आदि मानवीय मूल्यों को अपने जीवन में, अपने व्यवहार में नहीं लाते तब तक हम आध्यात्मिक नहीं हैं ।
धन कमाने और सुख-सुविधाओं का जीवन जीने के साथ हम इनसान बने । जब कोई व्यक्ति अपराध करता है, मानवीय आचरण के विरुद्ध कोई काम करता है तो समाज में उसका मूल्यांकन, उसके धर्म के साथ जोड़कर किया जाता है कि--- अमुक धर्म का है इसलिए ऐसा है ।
हमारे कार्य, हमारा आचरण ही हमारे धर्म को प्रतिबिम्बित करता है । इसलिए यदि आपकी अपने धर्म में निष्ठा है, अपने ईश्वर में विश्वास है तो धर्म में बताये गये श्रेष्ठ सिद्धान्तों के अनुसार आचरण करें । ऐसा होने पर ही शान्ति संभव है ।
संसार में अनेक धर्म है और हम सबके महान धर्म गुरुओं ने नैतिकता के अनेक सिद्धांत बतायें है, जब तक़ हम उनके द्वारा बताये गये श्रेष्ठ सिद्धांतों को------ दया, करुणा, संवेदना, सहयोग, सहानुभूति, प्रेम, कर्तव्यपालन, ईमानदारी, सत्य बोलना आदि मानवीय मूल्यों को अपने जीवन में, अपने व्यवहार में नहीं लाते तब तक हम आध्यात्मिक नहीं हैं ।
धन कमाने और सुख-सुविधाओं का जीवन जीने के साथ हम इनसान बने । जब कोई व्यक्ति अपराध करता है, मानवीय आचरण के विरुद्ध कोई काम करता है तो समाज में उसका मूल्यांकन, उसके धर्म के साथ जोड़कर किया जाता है कि--- अमुक धर्म का है इसलिए ऐसा है ।
हमारे कार्य, हमारा आचरण ही हमारे धर्म को प्रतिबिम्बित करता है । इसलिए यदि आपकी अपने धर्म में निष्ठा है, अपने ईश्वर में विश्वास है तो धर्म में बताये गये श्रेष्ठ सिद्धान्तों के अनुसार आचरण करें । ऐसा होने पर ही शान्ति संभव है ।
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