आज मनुष्य बहुत स्वार्थी हो गया है । धन को बहुत महत्व दिया इसलिए भावनाएं समाप्त हो गईं । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है हम अपनी जरूरतों के लिए केवल इनसान पर ही निर्भर नहीं होते अपितु पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों पर भी निर्भर होते है । विशेष रूप से गाय, भैंस पालतू पशु है जो स्वयं अपना घर नहीं बनाते, जीवन भर दूध देकर मनुष्यों का पोषण करते हैं ।
माता-पिता भी परिवार का पालन-पोषण करते हैं, उनके वृद्ध हो जाने पर, जब वे असमर्थ हो जाते हैं और परिवार के युवा सदस्यों के साथ समायोजन नहीं हो पाता तो उनके लिए वृद्धा-आश्रम की व्यवस्था है, शासन से भी पेंशन आदि की मदद मिल जाती है ।
जब मनुष्य अपना पोषण करने वाले मूक प्राणियों के प्रति कठोर और स्वार्थी हो जाता है कि जब तक दूध मिले तो ठीक है अन्यथा घर से बाहर कर दिया, चाहें बीमार हो अथवा कसाई ले जाये, कोई मतलब नहीं । तब ऐसे निर्दयी व्यवहार का दण्ड सम्पूर्ण समाज को किसी न किसी रूप में मिलता है ।
पहले के अनेक राजा-महाराजा जो इतिहास में अमर है, जिनका शासन काल स्वर्ण-युग कहलाता है, जिन्होंने जनता की भलाई के अनेक कार्य किये उन्होंने इस सत्य की गहराई को समझा था और अपने राज्य में पालतू पशुओं के लिए अनेक चरागाह बनवाये थे, पशु चिकित्सालय की व्यवस्था की थी ।
दूध-घी का पोषण सम्पूर्ण समाज को मिलता है इसलिए गौरक्षा की जिम्मेदारी भी सम्पूर्ण समाज की है । ठोस कदम उठाकर ही समाधान संभव है ।
माता-पिता भी परिवार का पालन-पोषण करते हैं, उनके वृद्ध हो जाने पर, जब वे असमर्थ हो जाते हैं और परिवार के युवा सदस्यों के साथ समायोजन नहीं हो पाता तो उनके लिए वृद्धा-आश्रम की व्यवस्था है, शासन से भी पेंशन आदि की मदद मिल जाती है ।
जब मनुष्य अपना पोषण करने वाले मूक प्राणियों के प्रति कठोर और स्वार्थी हो जाता है कि जब तक दूध मिले तो ठीक है अन्यथा घर से बाहर कर दिया, चाहें बीमार हो अथवा कसाई ले जाये, कोई मतलब नहीं । तब ऐसे निर्दयी व्यवहार का दण्ड सम्पूर्ण समाज को किसी न किसी रूप में मिलता है ।
पहले के अनेक राजा-महाराजा जो इतिहास में अमर है, जिनका शासन काल स्वर्ण-युग कहलाता है, जिन्होंने जनता की भलाई के अनेक कार्य किये उन्होंने इस सत्य की गहराई को समझा था और अपने राज्य में पालतू पशुओं के लिए अनेक चरागाह बनवाये थे, पशु चिकित्सालय की व्यवस्था की थी ।
दूध-घी का पोषण सम्पूर्ण समाज को मिलता है इसलिए गौरक्षा की जिम्मेदारी भी सम्पूर्ण समाज की है । ठोस कदम उठाकर ही समाधान संभव है ।
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