जब व्यक्ति अपने कर्तव्य से भागता है, जो भी कार्य उसके करने का है उसे ईमानदारी से नही करता तो इससे उसका स्वयं का मन अशांत होता है और ऐसे लोगों की अधिकता से समाज में अशान्ति उत्पन्न होती है । आज इतना भ्रष्टाचार बढ़ गया है उसका प्रमुख कारण यही है कि कर्तव्यपालन में ईमानदारी नहीं है । लोगों ने श्रम और नैतिकता से धन कमाने के बजाय चतुराई से, बिना श्रम के कम समय में अधिक से अधिक धन कमाना और उस धन पर अहंकार करना ही अपना कर्तव्य समझ लिया है ।
यही अशान्ति का सबसे बड़ा कारण है । धन को अधिक महत्व देने के कारण ही ह्रदय में संवेदना सूख गई । जिस व्यवसाय से व्यक्ति का उसके परिवार का पालन-पोषण होता है, जो व्यक्ति उसी व्यवसाय के प्रति ईमानदार नहीं है , ऐसा व्यक्ति अपने परिवार, समाज किसी के प्रति भी सच्चा और विश्वसनीय नहीं होता । आज ऐसे ही व्यक्तियों की भरमार है ।
यदि शान्ति चाहिए तो इच्छाओं पर लगाम लगानी होंगी, सुख-भोग, वैभव की सीमा निर्धारित करनी होगी । यह नियंत्रण व्यक्ति को स्वयं अपने विवेक से करना होगा ।
यह विवेक कैसे जाग्रत हो ? आज के युग में इसका एक ही तरीका है--- सत्कर्म करने से ही मन के विकार दूर होते हैं । निष्काम कर्म के साथ यदि गायत्री मन्त्र का मन में जप करेंगे तो सद्बुद्धि आएगी । सद्बुद्धि ही समस्त सफलताओं का आधार है ।
यही अशान्ति का सबसे बड़ा कारण है । धन को अधिक महत्व देने के कारण ही ह्रदय में संवेदना सूख गई । जिस व्यवसाय से व्यक्ति का उसके परिवार का पालन-पोषण होता है, जो व्यक्ति उसी व्यवसाय के प्रति ईमानदार नहीं है , ऐसा व्यक्ति अपने परिवार, समाज किसी के प्रति भी सच्चा और विश्वसनीय नहीं होता । आज ऐसे ही व्यक्तियों की भरमार है ।
यदि शान्ति चाहिए तो इच्छाओं पर लगाम लगानी होंगी, सुख-भोग, वैभव की सीमा निर्धारित करनी होगी । यह नियंत्रण व्यक्ति को स्वयं अपने विवेक से करना होगा ।
यह विवेक कैसे जाग्रत हो ? आज के युग में इसका एक ही तरीका है--- सत्कर्म करने से ही मन के विकार दूर होते हैं । निष्काम कर्म के साथ यदि गायत्री मन्त्र का मन में जप करेंगे तो सद्बुद्धि आएगी । सद्बुद्धि ही समस्त सफलताओं का आधार है ।
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