शरीर में कोई बीमारी हो, कहीं चोट लग जाये, काँटा चुभे, कोई दुर्घटना हो तो बेहद कष्ट होता है ।
धन, चिकित्सा आदि सुविधाएँ उपलब्ध हों, सहानुभूति प्रकट करने वालों की लम्बी लाइन लगी हो लेकिन कष्ट तो स्वयं को ही सहन करना पड़ता है ।
प्रकृति में जो आप देते हैं वही आपको मिलता है । किसी को खुशी देंगे तो आपको भी खुशी मिलेगी और किसी निर्दोष प्राणी को शारीरिक कष्ट देंगे तो बदले में आपको भी कष्ट मिलेगा ।
अपने स्वाद के लिए निर्दोष प्राणी की हत्या न करें | प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं होता ।
कई बार देखा जाता है लोग बड़े-बड़े अपराध करते हैं और कानून से बच जाते हैं लेकिन ईश्वरीय विधान में पाप-पुण्य का लेखा-जोखा होता है, ऊँच-नीच, अमीर -गरीब आदि बिना किसी भेदभाव के अपने कर्मों का हिसाब हर किसी कों चु काना पड़ता है ।
हमारे लिए हमारा ये एक जन्म है, ईश्वरीय विधान में यह यात्रा का एक पड़ाव है, एक स्टेशन है ।
हमें हमारे कर्मों का फल इसी स्टेशन पर मिल सकता है लेकिन यदि हमारे पास पुराने पुण्यों का भण्डार है तो अपनी यात्रा के इस स्टेशन पर किये गये पाप कर्मों का फल , इन पुण्य के समाप्त होने पर अगले किसी स्टेशन पर मिलना निश्चित है ।
सुख-शान्ति से जीना है तो जानबूझकर, पूरे होश में कभी कोई पाप, प्राणी की हत्या न करें । समय-समय पर होने वाली विभिन्न प्राकृतिक आपदाएं, बड़ी दुर्घटनाएं ईश्वरीय संकेत हैं कि बुद्धिमान प्राणी मनुष्य के ह्रदय में दया, करुणा, प्रेम, सहानुभूति जैसी श्रेष्ठ भावनाएं समाप्त हो गईं हैं इसीलिए प्रकृति अपना उग्र रूप दिखा रहीं हैं ।
नि :स्वार्थ भाव से सत्कर्म कर के ही आज के समय में व्यक्ति सुरक्षित रह सकता है ।
धन, चिकित्सा आदि सुविधाएँ उपलब्ध हों, सहानुभूति प्रकट करने वालों की लम्बी लाइन लगी हो लेकिन कष्ट तो स्वयं को ही सहन करना पड़ता है ।
प्रकृति में जो आप देते हैं वही आपको मिलता है । किसी को खुशी देंगे तो आपको भी खुशी मिलेगी और किसी निर्दोष प्राणी को शारीरिक कष्ट देंगे तो बदले में आपको भी कष्ट मिलेगा ।
अपने स्वाद के लिए निर्दोष प्राणी की हत्या न करें | प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं होता ।
कई बार देखा जाता है लोग बड़े-बड़े अपराध करते हैं और कानून से बच जाते हैं लेकिन ईश्वरीय विधान में पाप-पुण्य का लेखा-जोखा होता है, ऊँच-नीच, अमीर -गरीब आदि बिना किसी भेदभाव के अपने कर्मों का हिसाब हर किसी कों चु काना पड़ता है ।
हमारे लिए हमारा ये एक जन्म है, ईश्वरीय विधान में यह यात्रा का एक पड़ाव है, एक स्टेशन है ।
हमें हमारे कर्मों का फल इसी स्टेशन पर मिल सकता है लेकिन यदि हमारे पास पुराने पुण्यों का भण्डार है तो अपनी यात्रा के इस स्टेशन पर किये गये पाप कर्मों का फल , इन पुण्य के समाप्त होने पर अगले किसी स्टेशन पर मिलना निश्चित है ।
सुख-शान्ति से जीना है तो जानबूझकर, पूरे होश में कभी कोई पाप, प्राणी की हत्या न करें । समय-समय पर होने वाली विभिन्न प्राकृतिक आपदाएं, बड़ी दुर्घटनाएं ईश्वरीय संकेत हैं कि बुद्धिमान प्राणी मनुष्य के ह्रदय में दया, करुणा, प्रेम, सहानुभूति जैसी श्रेष्ठ भावनाएं समाप्त हो गईं हैं इसीलिए प्रकृति अपना उग्र रूप दिखा रहीं हैं ।
नि :स्वार्थ भाव से सत्कर्म कर के ही आज के समय में व्यक्ति सुरक्षित रह सकता है ।
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