सबके जीवन में उतार - चढ़ाव आते हैं , सुख - दुःख आते हैं , इनसे सबसे ज्यादा प्रभावित वे लोग होते हैं जो आलसी हैं , कर्महीन हैं । जो स्वयं काम न करके दूसरों की कमाई और सेवा पर जीते हैं । कर्तव्य पालन नहीं करते और निकम्मा जीवन जीना अपना अधिकार समझते हैं , ऐसे लोगों के जीवन में छोटी सी भी कोई समस्या आ जाये तो दुःखी और परेशान हो जाते हैं और कभी निराशा और तनाव की अधिकता में आत्महत्या तक कर लेते हैं ।
इसके विपरीत जो मेहनती हैं और निर्धन हैं , अभावों में रहते हैं , जिनकी आय बहुत कम है , जिनका शिक्षा और सोचने - विचारने का स्तर बहुत साधारण है , वे जीवन की वास्तविकता को इतना समझ चुके होते हैं कि विपरीत घटनाएँ उन्हें इतना प्रभावित नहीं करतीं । सुख और दुःख को जीवन का अनिवार्य अंग समझ कर स्वीकार करते हैं और मेहनत - मजदूरी से जो मिला उसमे खुश रहते हैं ।
सुख शान्ति से जीने के लिए जरुरी है शरीर व आत्मा दोनों को पोषण मिले ---- शरीर को स्वस्थ रखने के लिए जरुरी है कि शारीरिक श्रम करें , अपना पसीना बहायें । और आत्मा के पोषण के लिए जरुरी है --- कर्तव्य पालन पूर्ण ईमानदारी से करें , उसमे नैतिकता का समावेश हो । आज इसी का अभाव है इसीलिए संसार में इतनी समस्याएं हैं ।
इसके विपरीत जो मेहनती हैं और निर्धन हैं , अभावों में रहते हैं , जिनकी आय बहुत कम है , जिनका शिक्षा और सोचने - विचारने का स्तर बहुत साधारण है , वे जीवन की वास्तविकता को इतना समझ चुके होते हैं कि विपरीत घटनाएँ उन्हें इतना प्रभावित नहीं करतीं । सुख और दुःख को जीवन का अनिवार्य अंग समझ कर स्वीकार करते हैं और मेहनत - मजदूरी से जो मिला उसमे खुश रहते हैं ।
सुख शान्ति से जीने के लिए जरुरी है शरीर व आत्मा दोनों को पोषण मिले ---- शरीर को स्वस्थ रखने के लिए जरुरी है कि शारीरिक श्रम करें , अपना पसीना बहायें । और आत्मा के पोषण के लिए जरुरी है --- कर्तव्य पालन पूर्ण ईमानदारी से करें , उसमे नैतिकता का समावेश हो । आज इसी का अभाव है इसीलिए संसार में इतनी समस्याएं हैं ।
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