धार्मिक कर्मकाण्ड की महत्ता है क्योंकि हर व्यक्ति योगी नहीं हो सकता , ध्यान , मन्त्र - जप नहीं कर सकता । एक किसान , मजदूर, दिन भर परिश्रम करके किसी तरह परिवार का पालन - पोषण करने वाला व्यक्ति भगवान को फूल -पत्ती चढ़ाकर, आरती , भजन गा कर , कोई कथा - पूजा करा के ही भगवान को प्रसन्न करता है । उसे विश्वास भी होता है कि उसकी पूजा - भक्ति का ही परिणाम है कि परिवार का गुजर - बसर हो रहा है । वह चैन की नींद सोता है ।
समस्या तब पैदा होती है जब पढ़े - लिखे धर्म के ठेकेदार इन लोगों की सरलता और अज्ञानता का फायदा उठाकर कर्मकांड के नाम पर खूब धन कमा कर विलासिता का जीवन जीते हैं ।
आज के समय में अशान्ति इसलिए है कि लोग केवल कर्मकांड कर के , सुबह शाम पूजा , आरती , प्रार्थना कर के स्वयं को धार्मिक समझते हैं और दिन भर भ्रष्टाचार , बेईमानी , लूट, लोगों को उत्पीड़ित करना , षड्यंत्र रचना ' कर्तव्य की चोरी आदि पाप कर्म करते रहते हैं ।
संसार की सारी समस्याएं गलत धार्मिक आचरण करने से ही उत्पन्न होती हैं । धार्मिक कर्मकांड करना , या उन्हें धर्म के ठेकेदारों से कराना , यह व्यक्ति का निजी प्रश्न है । अपने मन की खुशी, अपनी परम्पराओं के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति कर्मकांड आदि कर सकता है
लेकिन यदि अपने जीवन में ---- सुख शान्ति चाहिए , चैन की नींद आये , बीमारियाँ प्रारब्ध वश हों लेकिन उनमे कष्ट न हो , परिवार में अकाल - मृत्यु न हो , कष्ट का समय शान्ति से कट जाये , सद्बुद्धि हो ----- तो कर्मकांडों के साथ ---- 1 . नि:स्वार्थ भाव से सत्कर्म करना अनिवार्य है और
2. अपनी दुष्प्रवृतियों को दूर करने का निरंतर प्रयास करना अनिवार्य है । ---- यही रास्ता है जिससे ईश्वर की कृपा प्राप्त हो सकती है ।
समस्या तब पैदा होती है जब पढ़े - लिखे धर्म के ठेकेदार इन लोगों की सरलता और अज्ञानता का फायदा उठाकर कर्मकांड के नाम पर खूब धन कमा कर विलासिता का जीवन जीते हैं ।
आज के समय में अशान्ति इसलिए है कि लोग केवल कर्मकांड कर के , सुबह शाम पूजा , आरती , प्रार्थना कर के स्वयं को धार्मिक समझते हैं और दिन भर भ्रष्टाचार , बेईमानी , लूट, लोगों को उत्पीड़ित करना , षड्यंत्र रचना ' कर्तव्य की चोरी आदि पाप कर्म करते रहते हैं ।
संसार की सारी समस्याएं गलत धार्मिक आचरण करने से ही उत्पन्न होती हैं । धार्मिक कर्मकांड करना , या उन्हें धर्म के ठेकेदारों से कराना , यह व्यक्ति का निजी प्रश्न है । अपने मन की खुशी, अपनी परम्पराओं के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति कर्मकांड आदि कर सकता है
लेकिन यदि अपने जीवन में ---- सुख शान्ति चाहिए , चैन की नींद आये , बीमारियाँ प्रारब्ध वश हों लेकिन उनमे कष्ट न हो , परिवार में अकाल - मृत्यु न हो , कष्ट का समय शान्ति से कट जाये , सद्बुद्धि हो ----- तो कर्मकांडों के साथ ---- 1 . नि:स्वार्थ भाव से सत्कर्म करना अनिवार्य है और
2. अपनी दुष्प्रवृतियों को दूर करने का निरंतर प्रयास करना अनिवार्य है । ---- यही रास्ता है जिससे ईश्वर की कृपा प्राप्त हो सकती है ।
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