आज कोई भी व्यक्ति दूसरे को सुखी नहीं देख सकता । सामंती व्यवस्था समाप्त तो हो गई लेकिन अभी तक लोगों के ह्रदय से जमींदारी का , सामंती व्यवस्था का भूत उतरा नहीं । चाहे परिवार हो , समाज हो , विभिन्न संस्थाएं हों , कार्यालय हों --- कुछ लोग स्वयं को शक्तिशाली घोषित कर अपनी हुकूमत चलाना चाहते हैं । अपने व्यक्तित्व को , अपने स्वाभिमान को मिटाकर इन लोगों के अनुसार न चलें तो ऐसे लोग निरंतर षड्यंत्र रचकर परेशान करते रहेंगे । जब भी समाज में ऐसे सामंतों की अधिकता हुई है तो अशान्ति बढ़ी है ।
थोड़ी सी भी शक्ति आने पर व्यक्ति स्वयं को दूसरों का भाग्य - विधाता समझने लगता है , उसका अहंकार हुंकारने लगता है । ऐसे लोगों को एक सत्य समझना चाहिए कि कोई किसी के माथे पर खिंची रेखाओं को नहीं मिटा सकता , किसी के भाग्य को नहीं बदल सकता । यह तो ईश्वर के हाथ में है । ईश्वरीय विधान में दखल करने से अच्छा है , अपने कर्म अच्छे करो , अपनी शक्ति का सदुपयोग करो । जब ईश्वरीय शक्ति में विश्वास करने वाले अधिक लोग होंगे तभी संसार में शान्ति होगी ।
दूसरों को नीचे गिराने से बेहतर है , अपने श्रेष्ठ कर्मों से स्वयं को ऊँचा उठाओ ।
थोड़ी सी भी शक्ति आने पर व्यक्ति स्वयं को दूसरों का भाग्य - विधाता समझने लगता है , उसका अहंकार हुंकारने लगता है । ऐसे लोगों को एक सत्य समझना चाहिए कि कोई किसी के माथे पर खिंची रेखाओं को नहीं मिटा सकता , किसी के भाग्य को नहीं बदल सकता । यह तो ईश्वर के हाथ में है । ईश्वरीय विधान में दखल करने से अच्छा है , अपने कर्म अच्छे करो , अपनी शक्ति का सदुपयोग करो । जब ईश्वरीय शक्ति में विश्वास करने वाले अधिक लोग होंगे तभी संसार में शान्ति होगी ।
दूसरों को नीचे गिराने से बेहतर है , अपने श्रेष्ठ कर्मों से स्वयं को ऊँचा उठाओ ।
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