मनुष्य की यह कमजोरी है कि वह जानता है कि अमुक आदत बुरी है , शरीर व मन दोनों के लिए नुकसानदायक है , फिर भी वह उसे छोड़ता नहीं है l विशेष रूप से जब उम्र ढलने लगती है , 60 - 65 वर्ष की उम्र हो जाने पर लोगों को ऐसा लगने लगता है कि अब जीवन हाथ से फिसलता जा रहा है तो वे सुखों को , भोग - विलास को और तेजी से पकड़ना चाहते हैं , उन्हें लगता है कितने सुख और भोग लें । शरीर साथ देना बंद कर देता है लेकिन इच्छाएं समाप्त नहीं होती ।
जो युवा पीढ़ी है , वह परिवार , समाज का अनुकरण करती है , बुराई का रास्ता सरल है , इसलिए पतन तेजी से होता है ।
कोई भी दुष्प्रवृति को छोड़ना कठिन नहीं है , जरुरी ये है कि उन दुष्प्रवृतियों पर चारों ओर से आक्रमण किया जाये । व्यक्ति स्वयं संकल्प ले , और मन को अस्थिर करने वाले तत्व जैसे शराब , तम्बाकू , अश्लील फ़िल्में --- उसे सरलता से न मिल पायें । इसके साथ जरुरी है कि समाज में ऐसी जागरूकता हो कि कोई फालतू न बैठे , सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रहें । बच्चों से लेकर वृद्ध तक , जब सब अपनी उम्र के अनुरूप सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रहेंगे तो दुष्प्रवृतियों को मन में प्रवेश करने का मौका ही नहीं मिलेगा ।
जो युवा पीढ़ी है , वह परिवार , समाज का अनुकरण करती है , बुराई का रास्ता सरल है , इसलिए पतन तेजी से होता है ।
कोई भी दुष्प्रवृति को छोड़ना कठिन नहीं है , जरुरी ये है कि उन दुष्प्रवृतियों पर चारों ओर से आक्रमण किया जाये । व्यक्ति स्वयं संकल्प ले , और मन को अस्थिर करने वाले तत्व जैसे शराब , तम्बाकू , अश्लील फ़िल्में --- उसे सरलता से न मिल पायें । इसके साथ जरुरी है कि समाज में ऐसी जागरूकता हो कि कोई फालतू न बैठे , सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रहें । बच्चों से लेकर वृद्ध तक , जब सब अपनी उम्र के अनुरूप सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रहेंगे तो दुष्प्रवृतियों को मन में प्रवेश करने का मौका ही नहीं मिलेगा ।
very well said
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