बहुत लम्बे समय से यह देखा जा रहा है कि लोग समाज को सुधारने के लिए सामान्य जनता को जगाने का प्रयास करते हैं , जो समर्थ हैं और अपने ज्ञान और शक्ति का दुरूपयोग कर रहे हैं , उनकी सुप्त चेतना को जगाने का प्रयास नहीं किया जाता l समर्थ लोगों को इस बात का एहसास होना चाहिए कि समाज को गलत दिशा देकर , लोगों की मज़बूरी का , उनकी सरलता का फायदा उठाकर वे अपना जो स्वार्थ सिद्ध करते हैं उसे प्रकृति क्षमा नहीं करती l उसका परिणाम उनके जीवन में भीषण तनाव , बीमारी , असहनीय दुःख आदि घटनाओं के रूप में सामने आता है l
जैसे हम देखते हैं कि युगों से धर्म के ठेकेदार सामान्य जनता को गृह , नक्षत्र , दशा आदि का भय दिखाकर लूटते हैं l उनका यह कार्य सही है या गलत इसका निर्णय प्रकृति के , ईश्वर के हाथ में है l सामान्य - जन जिसके सामने परिवार का पोषण , गरीबी , बेरोजगारी की समस्या है जो ध्यान , मन्त्र जप आदि साधना नहीं कर सकता , वह भक्ति भाव से इस प्रकार के कर्मकांड कर के ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयत्न करता है l उसके ह्रदय में श्रद्धा भाव होता है , वह इस बात को नहीं सोचता कि ग्रह दशाओं में सुधार का झांसा देकर उसे लूटा जा रहा है l
समाज में एक वर्ग ऐसा है जो संपन्न है उनके लिए कथा - आयोजन , जागरण , विभिन्न धार्मिक कर्मकांड ईश्वर को याद करने के माध्यम से समाज में व्यवहार बनाना और अपने वैभव का प्रदर्शन है l
समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो कथा आदि बड़े स्तर के धार्मिक कार्यक्रमों से खुश होते हैं l उन्हें इस बात से मतलब नहीं होता कि कथा - प्रवचन में क्या कहा गया l उनकी ख़ुशी इसमें है कि उनके ठेले से कितने गुब्बारे बिक गए , किसी की दुकान की कितनी मिठाई , फूल माला , पूजा के चित्र आदि बिके , झूले वाले को कितनी आमदनी हो गई l इस वर्ग की ख़ुशी इसमें है कि इन उत्सवों में उनके परिवार के लिए कितने दिन का भोजन - पानी का प्रबंध हो गया l
समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो कहने को पढ़ा - लिखा है किन्तु उसके पास सार्थक , सकारात्मक शिक्षा नहीं है , बेरोजगार है l ऐसे में वे लोग भक्तों को दूर - दराज के क्षेत्रों से जुटाना , उन्हें दान - पुण्य करने को प्रेरित करना , आदि कार्यों में कुछ आमदनी हो जाती है l
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है l सामाजिक , धार्मिक कार्य सम्पूर्ण समाज को बहुत गहरे प्रभावित करते हैं l
जैसे हम देखते हैं कि युगों से धर्म के ठेकेदार सामान्य जनता को गृह , नक्षत्र , दशा आदि का भय दिखाकर लूटते हैं l उनका यह कार्य सही है या गलत इसका निर्णय प्रकृति के , ईश्वर के हाथ में है l सामान्य - जन जिसके सामने परिवार का पोषण , गरीबी , बेरोजगारी की समस्या है जो ध्यान , मन्त्र जप आदि साधना नहीं कर सकता , वह भक्ति भाव से इस प्रकार के कर्मकांड कर के ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयत्न करता है l उसके ह्रदय में श्रद्धा भाव होता है , वह इस बात को नहीं सोचता कि ग्रह दशाओं में सुधार का झांसा देकर उसे लूटा जा रहा है l
समाज में एक वर्ग ऐसा है जो संपन्न है उनके लिए कथा - आयोजन , जागरण , विभिन्न धार्मिक कर्मकांड ईश्वर को याद करने के माध्यम से समाज में व्यवहार बनाना और अपने वैभव का प्रदर्शन है l
समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो कथा आदि बड़े स्तर के धार्मिक कार्यक्रमों से खुश होते हैं l उन्हें इस बात से मतलब नहीं होता कि कथा - प्रवचन में क्या कहा गया l उनकी ख़ुशी इसमें है कि उनके ठेले से कितने गुब्बारे बिक गए , किसी की दुकान की कितनी मिठाई , फूल माला , पूजा के चित्र आदि बिके , झूले वाले को कितनी आमदनी हो गई l इस वर्ग की ख़ुशी इसमें है कि इन उत्सवों में उनके परिवार के लिए कितने दिन का भोजन - पानी का प्रबंध हो गया l
समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो कहने को पढ़ा - लिखा है किन्तु उसके पास सार्थक , सकारात्मक शिक्षा नहीं है , बेरोजगार है l ऐसे में वे लोग भक्तों को दूर - दराज के क्षेत्रों से जुटाना , उन्हें दान - पुण्य करने को प्रेरित करना , आदि कार्यों में कुछ आमदनी हो जाती है l
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है l सामाजिक , धार्मिक कार्य सम्पूर्ण समाज को बहुत गहरे प्रभावित करते हैं l
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