जब व्यक्ति अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं होता तभी वह अशांत रहता है, संतुष्ट रहने का अर्थ ये नहीं कि आलस करें , संतोष का अर्थ है--- जो कुछ अपने पास है उसमे खुश रहते हुए अपनी तरक्की के लिए निरंतर सही तरीके से प्रयास करें
यदि दूसरों के सुख-वैभव, पद-प्रतिष्ठा से अपनी तुलना करेंगे तो मन में निराशा आयेगी, मन अशांत होगा और जों कुछ अपने पास है उसका भी आनंद नहीं उठा पायेंगे । ईश्वर ने जो हमें दिया उसकी खुशी मनाते हुए जों कुछ पाना चाहते हैं उसके लिए ईमानदारी से प्रयास करें ।
सत्कर्म को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करने से जीवन में आने वाली विभिन्न बाधाएं दूर होती हैं
हमारा उद्देश्य हो---- सफल भी हों, स्वस्थ भी रहें और मन भी शांत रहे
ऐसा तभी संभव है जब हम सुख-भोग की अंधी दौड़ मे नहीं भागेंगे, अपनी तरक्की के लिए किसी का हक नहीं छीनेगें, किसी को धक्का देकर आगे नहीं बढ़ेंगे |
सत्कर्म और सच्चाई के साथ प्रयास करने से ही जीवन में सुख-शांति मिलती है ।
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