व्यक्ति अपने आचरण से समाज को , आने वाली पीढ़ियों को , देश के कर्णधारों को बहुत कुछ सिखाता है । यह समाज पर दुर्बुद्धि का आक्रमण है और हम सबका दुर्भाग्य कि आज व्यक्ति अपने आचरण से सबको भ्रष्टाचार सिखा रहा है ------ जैसे जिन माता - पिता के पास पर्याप्त पूंजी है वे अपनी संतान को , जिसमे योग्यता नहीं है , फिर भी उसे डॉक्टर , इंजीनियर बनाना चाहते हैं और इसके लिए वे एक बड़ी धनराशि रिश्वत में देना चाहते हैं या कोई अन्य गैर कानूनी तरीका अपनाते हैं । पुत्र या पुत्री के स्वयं के पास इतना धन नहीं होता । बड़ी धनराशि कहाँ और कैसे देना है , यह काम माता - पिता ही करते हैं । इस प्रकार माता - पिता अपने अहम् की पूर्ति के लिए और समाज में अपने स्टेटस को बनाये रखने के लिए गैर कानूनी तरीका अपनाकर स्वयं अपनी संतान को गलत राह पर चलने का पहला पाठ सिखाते हैं ।
इसी प्रकार विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में छात्र हित में शासन की ओर से विभिन्न योजनाओं में बड़ी राशि आती है । हम आये दिन समाचार पत्रों में विभिन्न घोटालों के बारे में पढ़ते हैं । कोई भी घोटाला एक व्यक्ति अकेला नहीं कर सकता । यह भी दुर्बुद्धि का ही प्रकोप है कि बुद्धिजीवी वर्ग के लोग अपनी बुद्धि का दुरूपयोग कर ऐसे घोटालों में नई पीढ़ी को भी जोड़ लेते हैं और उन्हें चुप रहकर अपना प्रतिशत , अपना हिस्सा लेने की आदत डाल देते हैं । ऐसे नवयुवकों का भी मन अब शिक्षा प्राप्त करने के बजाय हेराफेरी में लग जाता है । इस तरह भ्रष्टाचारियों की एक के बाद एक पीढ़ी तैयार होती जाती है ।
अब लोगों की चेतना मृत हो चुकी है , ऐसे लोगों को ईश्वरीय न्याय के अनुसार दंड तो मिलता है लेकिन अपने अहम् के कारण वे सुधरते नहीं है l ऐसे लोगों को कठोर दंड देकर ही श्रेष्ठ चरित्र की नई पीढ़ी का निर्माण किया जा सकता है
इसी प्रकार विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में छात्र हित में शासन की ओर से विभिन्न योजनाओं में बड़ी राशि आती है । हम आये दिन समाचार पत्रों में विभिन्न घोटालों के बारे में पढ़ते हैं । कोई भी घोटाला एक व्यक्ति अकेला नहीं कर सकता । यह भी दुर्बुद्धि का ही प्रकोप है कि बुद्धिजीवी वर्ग के लोग अपनी बुद्धि का दुरूपयोग कर ऐसे घोटालों में नई पीढ़ी को भी जोड़ लेते हैं और उन्हें चुप रहकर अपना प्रतिशत , अपना हिस्सा लेने की आदत डाल देते हैं । ऐसे नवयुवकों का भी मन अब शिक्षा प्राप्त करने के बजाय हेराफेरी में लग जाता है । इस तरह भ्रष्टाचारियों की एक के बाद एक पीढ़ी तैयार होती जाती है ।
अब लोगों की चेतना मृत हो चुकी है , ऐसे लोगों को ईश्वरीय न्याय के अनुसार दंड तो मिलता है लेकिन अपने अहम् के कारण वे सुधरते नहीं है l ऐसे लोगों को कठोर दंड देकर ही श्रेष्ठ चरित्र की नई पीढ़ी का निर्माण किया जा सकता है
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