जैसे - जैसे हम विकास की दिशा में आगे बढ़ते जा रहें हैं , लोगों का जीवन स्तर , सुख - सुविधाएँ बढ़ती जा रहीं हैं | यदि कहीं कुछ सुधार नहीं हुआ तो वह है ------ पुरुष वर्ग की मानसिकता । युगों से नारी को दासी बना कर रखा , विभिन्न तरीकों से उस पर अत्याचार किये । अनेक समाज सुधारकों के प्रयासों से अब नारी को अधिकार मिले हैं । अब नारी , पुरुष समान पढ़ - लिख कर विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ रही है । इससे एक नयी समस्या उत्पन्न हो गई ---
अब पुरुषों में नारी को सुरक्षा देने का जो भाव था वह समाप्त हो गया और उसका स्थान ईर्ष्या - द्वेष ने ले लिया । विभिन्न कार्य स्थलों पर महिलाओं को अपने समान वेतन प्राप्त करते देख उनकी ईर्ष्या बलवती हो जाती है और फिर वे तरह - तरह से महिलाओं को उत्पीड़ित करते हैं ।
ईर्ष्या -द्वेष के कारण ही समाज में महिलाओं के प्रति इतने क्रूर अपराध होते हैं ।
पुरुष प्रधान समाज है संभवत: इसलिए ऐसे अपराधियों को शीघ्र व कठोर दंड नहीं मिलता |
नारी और पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । और परिवार , समाज दोनों की सुरक्षा पर टिका है । आज की सबसे बड़ी जरुरत है कि नारी स्वतंत्र हो , लेकिन स्वच्छंद नहीं ।
और पुरुष , नारी की सुरक्षा , उसके चरित्र व उसके सम्मान की सुरक्षा को महत्व दे । तभी हमारी संस्कृति सुरक्षित रह सकती है । अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब यही पुरुष वर्ग पवित्र बेटी --- पवित्र पत्नी व पवित्र कुलवधू के लिए तरस जायेगा । महान आत्माएं पवित्र कोख से जन्म लेती हैं , वे भी इस धरती पर आने को तरसेंगी |
आज पारिवारिक कलह , वृद्धों की समस्या ऐसे ही अनैतिक वातावरण की उपज हैं ।
अब पुरुषों में नारी को सुरक्षा देने का जो भाव था वह समाप्त हो गया और उसका स्थान ईर्ष्या - द्वेष ने ले लिया । विभिन्न कार्य स्थलों पर महिलाओं को अपने समान वेतन प्राप्त करते देख उनकी ईर्ष्या बलवती हो जाती है और फिर वे तरह - तरह से महिलाओं को उत्पीड़ित करते हैं ।
ईर्ष्या -द्वेष के कारण ही समाज में महिलाओं के प्रति इतने क्रूर अपराध होते हैं ।
पुरुष प्रधान समाज है संभवत: इसलिए ऐसे अपराधियों को शीघ्र व कठोर दंड नहीं मिलता |
नारी और पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । और परिवार , समाज दोनों की सुरक्षा पर टिका है । आज की सबसे बड़ी जरुरत है कि नारी स्वतंत्र हो , लेकिन स्वच्छंद नहीं ।
और पुरुष , नारी की सुरक्षा , उसके चरित्र व उसके सम्मान की सुरक्षा को महत्व दे । तभी हमारी संस्कृति सुरक्षित रह सकती है । अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब यही पुरुष वर्ग पवित्र बेटी --- पवित्र पत्नी व पवित्र कुलवधू के लिए तरस जायेगा । महान आत्माएं पवित्र कोख से जन्म लेती हैं , वे भी इस धरती पर आने को तरसेंगी |
आज पारिवारिक कलह , वृद्धों की समस्या ऐसे ही अनैतिक वातावरण की उपज हैं ।
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